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23 नवंबर 2010

आइये उत्सव मनायें!

पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार पिछले रविवार को फूलबाग़ के 'गांधी चबूतरे' पर दख़ल की 'चौपाल' सजी। विषय था - 'शहादत के मायने' 
                                                                                                                       

 कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवर्तन करते हुए अशोक ने कहा कि ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ते हुए मरने वाला हर कोई शहीद है।  लेकिन होता यह है कि जो व्यवस्था के पक्ष में लड़ते हैं उन्हें तो शहादत के तमगे दिये जाते हैं लेकिन जो इसके ख़िलाफ़ लड़ते हैं उन्हें भुला दिया जाता है। आज़ादी की लड़ाई के दौरान अपनी जान देने वालों ने केवल अंग्रेज़ों के जाने की नहीं बल्कि देशवासियों के एक बेहतर भविष्य की बात भी सोची थी। लेकिन वह सपना पूरा नहीं हुआ। विडम्बना यह है कि माफ़ी मांग कर छूटने वाले सावरकर तो 'वीर' बना दिये गये लेकिन अंडमान की जेल में अमानवीय यातनाओं के आगे न झुकने वाले तमाम शहीद बेनाम रह गये। मुस्लिम लीग या आर एस एस जैसी ताक़तों ने उस दौर में साम्राज्यवाद की दलाली की भूमिका निभाई और आज शहादत की पूरी परंपरा को हाइजैक करके सबसे बड़े राष्ट्रभक्त बने बैठे हैं।         

मज़दूर नेता राजेश शर्मा ने कहा कि ज़रूरत इस बात की है कि जनता और ख़ासतौर पर नई पीढ़ी को शहीदों की उस परंपरा के उद्देश्य से परिचित कराया जाये। प्रो जी के सक्सेना ने कहा कि आज युवा पीढ़ी अपने इतिहास से काट दी गयी है और वह अख़बारों तथा समाचार चैनलों द्वारा परोसे हुए अधकचरे ज्ञान के भरोसे अपना मानस बना रही है। डा अशोक चौहान ने कहा कि जो किसान और मज़दूर आज भूख और कर्ज से दबकर मर रहे हैं वे भी शहीद हैं। डा जितेन्द्र बिसारिया ने झलकारी बाई को ख़ास तौर पर याद करते हुए कहा कि ग़रीबों और दलितों को उनके अभूतपूर्व बलिदान के बावज़ूद इतिहास में कभी उचित स्थान नहीं मिला। 

इस अवसर पर बहस में भाग लेते हुए दख़ल संयोजक अजय गुलाटी ने बिस्मिल शहादत दिवस 27 दिसंबर से भगत सिंह शहादत दिवस 23 मार्च तक 'शहीद उत्सव' मनाने का प्रस्ताव किया। सभी का मानना था कि अन्य समानधर्मी संगठनों को साथ लेकर यह किया जाये। जल्दी ही एक बैठक बुलाकर इस बारे में फैसला लिया जायेगा। बैठक में कुलदीप, जयवीर, दिनेश सहित अन्य कई लोगों ने शिरकत की।

30 जुलाई 2010

प्रेमचंद जयंती पर

युवा संवाद, ग्वालियर

प्रेस नोट

प्रेमचंद जयंती से खाप पंचायतों के ख़िलाफ़ अभियान


युवा संवाद ने आगामी 31 जुलाई को महान कथाकार प्रेमचंद की जयंती से लेकर 27 सितंबर को शहीद भगत सिंह की जयंती तक खाप पंचायती मानसिकता के ख़िलाफ़ अभियान चलाने का नि्चय किया है। इसकी शुरुआत आगामी 31 जुलाई को शाम 5 वजे से  फूलवाग स्थित गांधी पार्क पर एक ख़ुली गोष्ठी से की जायेगी जिसमें शहर के तमाम सामाजिक कार्यकर्ता, बौद्धिक वर्ग के प्रतिनिधि तथा साहित्यकार हिस्सा लेंगे। इसके अगले चरण में कालेजों, कार्यस्थलों आदि में परचा वितरण, आम सभा तथा गोष्ठियों के माध्यम से जजागरण अभियान चलाया जायेगा।

उक्त जानकारी देते हुए युवा संवाद के संयोजक अजय गुलाटी ने बताया कि प्रदेश के तमाम शहरों में यह अभियान चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य समाज में व्याप्त खाप पंचायती मानसिकता के ख़िलाफ़ माहौल तैयार करना है। उनहोंने शहर के तमाम प्रगतिशील लोगों, छात्रों तथा आम जन से इसमें सक्रिय हिस्सेदारी की अपील की है।

03 मई 2010

पुस्तक लोकार्पण और परिचर्चा की रिपोर्ट

पुस्तक लोकार्पण का दृश्य 

समाजवाद मानव की मुक्ति का महाआख्यान है। पूंजीवाद की आलोचना का आधार सिर्फ़ उसकी आर्थिक प्रणाली नहीं बल्कि उसके सामाजिक-सांस्कृतिक आयाम भी हैं। इसने समाज को अमानवीय बना दिया है। औरतों, दलितों और ग़रीबों की ज़िन्दगी इस व्यवस्था में लगातार बद्तर हुई है। सांस्कृतिक क्षेत्र को इसने इतना प्रदूषित कर दिया है कि मनुष्य की प्राकृतिक प्रतिभा का विकास इसके अंतर्गत असंभव है। इसीलिये व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक आमूलचूल लड़ाई लड़े बिना इन मुद्दों पर अलग-अलग लड़ाईयां नहीं लड़ी जा सकतीं। आज ज़रूरत मार्क्सवाद की गतिमान व्याख्या तथा नई सामाजार्थिक हक़ीक़त के बरक्स इसे लागू किये जाने की है। अशोक की किताब मार्क्स जीवन और विचार इस लड़ाई का ही एक हिस्सा है जो नये पाठकों और युवा पीढ़ी का मार्क्स से आलोचनात्मक परिचय कराती है। मई दिवस के अवसर पर ग्वालियर में युवा संवाद द्वारा आयोजित परिचर्चा हमारे समय में समाजवाद में हिस्सेदारी करते हुए जाने-माने संस्कृतिकर्मी प्रो शम्सुल इस्लाम ने कही।  

कमल नयन काबरा जी
परिचर्चा में हिस्सेदारी करते हुए वरिष्ठ अर्थशास्त्री कमल नयन काबरा ने कहा कि आज़ादी के बाद से ही विकास का जो माडल अपनाया गया वह व्यापक आबादी नहीं बल्कि एक सीमित वर्ग के हाथों में सत्ता तथा अर्थतंत्र के नियंत्रण को संकेन्द्रित करने वाला था। जिसे समाजवाद कहा गया वह वस्तुतः राज्य पूंजीवाद था। गांवों और शहरों के ग़रीबों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रही। समाजवाद का मतलब है एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सत्ता वास्तविक अर्थों में जनता के हाथ में रहे। आज रूस या चीन की कार्बन कापी नहीं हो सकती और नयी समाजवादी व्यवस्था को आज की सच्चाईयों के अनुरूप स्वयं को ढालना होगा। भूमण्डलीकरण के नाम पर जो प्रपंच रचा गया है अशोक उसे शोषण के अभयारण्य में बख़ूबी खोलते हैं।

कार्यक्रम का आरंभ शम्सुल इस्लाम, गैरी तथा अन्य साथियों द्वारा गाये गये गीत लाल झण्डा ले के हम आगे बढ़ते जायेंगे' से हुआ। इस अवसर पर युवा कवि, लेखक अशोक कुमार पाण्डेय की हाल ही में प्रकाशित दो किताबों, मार्क्स जीवन और विचार तथा शोषण के अभयारण्य भूमण्डलीकरण के दुष्प्रभाव और विकल्प का सवाल का लोकार्पण अथिति द्वय और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश दीक्षित द्वारा किया गया। पुस्तक परिचय देते हुए युवा कहानीकार जितेन्द्र विसारिया ने इसे मार्क्सवाद को समझने की ज़रूरी किताब बताया, वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी डा मधुमास खरे ने कहा कि यह छोटी सी किताब प्रगति प्रकाशन से छपने वाली उन किताबों की याद दिलाती है जिन्हें पढ़कर हमारी पीढ़ी ने मार्क्सवाद सीखा। अशोक ने कम्यूनिस्ट आंदोलनत का संक्षिप्त इतिहास लिखकर एक बड़ी ज़रूरत को पूरा किया है। युवा संवाद के संयोजक अजय गुलाटी ने कहा कि ये एक सक्रिय कार्यकर्ता की किताबें हैं जिन्हें आम जनता के लिये पूरी संबद्धता के साथ लिखा गया है। शोषण के अभयारण्य दूरुह माने जाने वाले विषय अर्थशास्त्र पर इतने रोचक तरीके से बात करती है कि इसे कोई भी पढ़कर अपनी अर्थव्यवस्था को समझ सकता है। लेखकीय वक्तव्य में अशोक पाण्डेय ने कहा कि किताब दरअसल बस वैसी ही होती है जैसा उसे पाठक समझता है। लिखना मेरे लिये इस लड़ाई का ही हिस्सा है और अगर ये किताबें उसमें कोई भूमिका निभा पायें तभी इनकी सार्थकता है। समाजवाद मेरे लिये एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें मौज़ूदा व्यवस्था से अधिक शांति हो, अधिक समृद्धि हो, अधिक लोकतंत्र और अधिक समानता। मुझे नहीं लगता कि उसकी लड़ाई आज पुराने तरीकों या फिर हिंसात्मक आंदोलनों से लड़ी जा सकती है।

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रकाश दीक्षित ने कहा कि अशोक का जुझारुपन और उसकी बैचैनी इन किताबों में साफ़ महसूस की जा सकती है। इसीलिये ये किताबें रोचक हैं और आपसे लगातार सवाल करती हैं। आज बाज़ार ने मध्य वर्ग को पूरी तरह भ्रष्ट बना दिया है और जो अधिकार संघर्षों के बाद हासिल हुए थे वे अब छीन लिये गये हैं। आज इस लड़ाई के लिये और अधिक प्रतिबद्ध संघर्ष की ज़रूरत है।

कार्यक्रम में साहित्यकार वक़ार सिद्दीकी, पवन करण, प्रदीप चौबे, ज़हीर क़ुरैशी, मुस्तफ़ा ख़ान, सत्यकेतु सांकृत, जी के सक्सेना, संतोष निगम, पारितोष मालवीय, इण्डियन लायर्स एसोसियेशन के गुरुदत्त शर्मा, अशोक शर्मा, मेडिकल रिप्रेज़ेन्टेटिव यूनियन के राजीव श्रीवास्तव, गुक्टु के ओ पी तिवारी, एस के तिवारी, डी के जैन, जे एस अलोरिया सी पी आई के सतीश गोविला, स्त्री अधिकार संगठन की किरण, बेबी चौहान, पत्रकार राकेश अचल सहित शहर के तमाम बुद्धिजीवी, ट्रेडयूनियन कर्मियों, छात्रों तथा आम जनों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की। संचालन अशोक चौहान ने किया और आभार प्रदर्शन फिरोज़ ख़ान ने।

27 दिसंबर 2009

साहित्यकार की जगह सडक नहीं होती







पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार युवा संवाद की पहल पर रविवार को शहर के तमाम जनसंगठनों ने पुराने हाईकोर्ट से शहर के हृदयस्थल महाराज बाडे पर पोस्ट आफ़िस की सीढियों के सहारे बने स्थायी मंच से आमसभा का आयोजन किया। रैली में शामिल 75 लोगों की संख्या सभा में दूनी हो गयी। लोग पूरे उत्साह से नारे लगा रहे थे-- कामगार एकता-ज़िन्दाबाद, महंगाई को दूर करो, लेखकों, ट्रेडयूनियनकर्मियों, महिलाओं और वक़ीलों की एकता-- ज़िन्दाबाद, शिक्षा, रोटी और रोज़गार-तीनों बनें मौलिक अधिकार, कैसी तरक्की कौन ख़ुशहाल- कारें सस्ती महंगी दाल!

सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने मंहगाई को राष्ट्रीय आपदा घोषित किये जाने, शिक्षा, रोटी और रोज़गार को मौलिक अधिकार बनाये जाने तथा नयी आर्थिक नीति वापस लेने की मांग की। एटक के राजेश शर्मा, कैलाश कोटिया, युवा संवाद के अजय गुलाटी, स्त्री अधिकार संगठन कि किरण, सीटू के श्याम कुशवाह, इण्डियन लायर्स एसोशियेशन के गुरुदत्त शर्मा तथा यतींद्र पाण्डेय, ग्वालियर यूनाईटेड काउंसिल आफ़ ट्रेड यूनियन्स के एम के जायसवाल, एम पी मेडिकल रिप्रेज़ेन्टेटिव यूनियन के राजीव श्रीवास्तव, आयुष मेडिकल एसोसियेशन के डा अशोक शर्मा, डा एम पी राजपूत, जन संघर्ष मोर्चे के अभयराज सिंह भदोरिया, नगर निगम कर्मचारी यूनियन के अशोक ख़ान, प्रलेसं के भगवान सिंह निरंजन सहित तमाम वक्ताओं ने इस संयुक्त मोर्चे को वक़्त की ज़रूरत बताते हुए संघर्ष की लौं तेज़ करने का संकल्प किया। संचालन युवा कवि अशोक कुमार पाण्डेय ने किया।

लेकिन जहां एक तरफ इन तबकों ने अपनी व्यापक एकता का परिचय दिया, शहर के मूर्धन्य काग़ज़ी शेर उर्फ़ साहित्यकार इससे दूर ही रहे। एक साहब को जब हमने फोन लगाया तो उत्तर मिला-- ''अरे भाई यह हमारा काम नहीं है। साहित्यकार की जगह सडक नहीं होती।'' आप को क्या लगता है?

25 दिसंबर 2009

मंहगाई हमारा भी मुद्दा है!




मंहगाई के खिलाफ साझा अभियान



मंहगाई के खिलाफ रैली और धरना आज



नगर के सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों तथा विभिन्न ट्रेड यूनियनों के ‘‘मंहगाई के खिलाफ संयुक्त मोर्चे‘‘ द्वारा पिछले एक सप्ताह से चलाये जा रहे अभियान के अंतिम दिन आज पुराने हाईकोर्ट से बाडे तक एक विरोध रैली निकाली जायेगी। बाडे पर मंहगाई के खिलाफ पैम्फलेट वितरण एवं आम सभा का अयोजन भी किया जायेगा। इसके पहले एक सप्ताह तक चले अभियान में विभिन्न चैराहों, बैंकों, कालेजों तथा मोह्ल्लों में इन संगठनों ने जनजागरण अभियान चलाया। इस रैली में युवा संवाद, इण्डियन लायर्स एसोशियेशन, प्रलेस, एटक, गुक्टु, जलेस, नगर निगम यूनियन, संवाद,इण्डियन डेन्टल एसोशियेशन, जन संघर्ष मोर्चा सहित तमाम जनसंगठनों की भागीदारी होगी।


मोर्चे के गुरुदत्त शर्मा तथा अभय राज सिंह भदोरिया ने इस अवसर पर शहर के तमाम बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, ट्रेडयूनियन कर्मियों तथा आमजनों से व्यापक भागीदारी की अपील की है।



भवदीय
(अशोक कुमार पाण्डेय)


संयोजक, संयुक्त मोर्चा


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निवेदक


युवा संवाद, जलेस, प्रलेस, इप्टा, संवाद, गुक्टु, एटक, सीटू, स्त्री अधिकार संगठन, नगर निगम यूनियन, बीमा कर्मचारी यूनियन, इण्डियन लायर्स एसोसियेशन, आल इण्डिया बैंक इंप्लाईज एसोसियेशन, नागरिक मोर्चा, जूटा, एम पी एम आर यू, बीएसएनएल यूनियन, आई डी ए

05 दिसंबर 2009

धार्मिक कट्टरपंथ तथा आतंकवाद


धार्मिक कट्टरपंथ तथा आतंकवाद एक दूसरे के पूरक हैं। छः दिसंबर भारतीय संविधान तथा साम्प्रदायिक सद्भाव पर आधारित हमारी परम्परा के चेहरे पर बदनुमा दाग़ है। आर एस एस और उसके आनुसांगिक संगठनो ने सत्ता के लोभ में देश के भीतर जो धार्मिक उन्माद पैदा कर लोगों के बीच साम्प्रदायिक विभाजन किया वही आज आतंकवाद के मूल में है। मनमोहन सिंह कहते हैं की माओवाद देश के सम्मुख सबसे बड़ा खतरा है पर वास्तविकता यह है कि हमारे सम्मुख सबसे बड़ा खतरा धार्मिक कट्टरपंथ है। यह बातें आज युवा संवाद की पहलकदमी पर दिसंबर को आयोजित साम्प्रदायिकता और आतंकवाद विरोधी दिवस पर अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डा मधुमास खरे ने कही।




उल्लेखनीय है कि युवा संवाद, संवाद, स्त्री अधिकार संगठन , प्रगतिशील लेखक संघ, आल इंडिया लायर्स एसोशियेशन, जनवादी लेखक संघ, बीमा कर्मचारी यूनियन, गुक्टू, इप्टा सहित शहर के तमाम जनसंगठनों ने छः दिसंबर को सांप्रदायिकता और आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप मे मनाते हुए फूलबाग स्थित गांधी प्रतिमा पर संयुक्त बैठक आयोजित की।




बैठक में इन संगठनों के प्रतिनिधियों ने भारत तथा दुनिया भर में बढते आतंकवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि इसके मूल में आर्थिक विषमतायें ही प्रमुख हैं। अजय गुलाटी ने विषय की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि आज अंबेडकर की पुण्यतिथि है और उन्होंने बहुत पहले धर्म के अमानवीय स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा था कि अगर कभी हिन्दु राष्ट्र बना तो वह दलितों और महिलाओं के लिये विनाशकारी होगा। अशोक पाण्डेय ने कहा कि इस धार्मिक राजनीति के केन्द्र में न मनुष्य है न इश्वर बस सत्ता है। आज़ादी के पहले मुस्लिम लीग और आर एस एस दोनों अंग्रेज़ों की सहयोगी थीं और बाद में देशभक्त हो गयीं। डा प्रवीण नीखरा ने शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन पर ज़ोर दिया तो ज्योति कुमारी तथा किरन ने धर्म के महिला विरोधी स्वरूप पर ध्यान खींचते हुए कहा कि हर दंगा स्त्री के शरीर पर हमले से शुरु होता है।
डा पारितोष मालवीय, अशोक चौहान, जितेंद्र बिसारिया, पवन करण, राजवीर राठौर, ज़हीर कुरेशी, फ़िरोज़ ख़ान सहित अनेक लोगों ने बहस में हिस्सेदारी की। अंत में पास एक साझा प्रस्ताव में साम्प्रदायिकता विरोधी ताक़तों को मज़बूत करने तथा शीघ्र मंहगाई पर जनजागरण के लिये एक अभियान चलाने पर सहमति बनी।

04 दिसंबर 2008

आतंक एवं साम्प्रदायिकता के खिलाफ

५ दिसम्बर , ग्वालियर. युवा संवाद, ग्वालियर की पहलकदमी पर शहर के अनेक प्रगतिशील तथा जनपक्षधर संगठनों ने बम्बई में हुए नृशंश आतंकी हमले और देश में बढ़ते सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ शांति मार्च निकालने का फैसला लिया है. इस मार्च में युवा संवाद, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा, जनवादी लेखक संघ, संवाद, पैरवी, इंडियन लायर्स असोसिएसन, कर्मचारी मोर्चा, स्त्री अधिकार संगठन सहित नगर के तमाम लेखक, बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी, छात्र तथा आम जन शामिल होंगे. यह शांतिमार्च कल ६ दिसम्बर शाम ५.३० बजे पड़ाव स्थित कला विथीका से शुरू होकर फूलबाग स्थित गाँधी पार्क पर समाप्त होगा जहाँ गाँधी जी की प्रतिमा के सामने मौन रखकर इस कार्यवाही के शिकार मासूमो को श्रद्धांजलिअर्पित की जायेगी. युवा संवाद के संयोजक अजय गुलाटी ने सभी लोगों से इसमे सक्रिय भागीदारी की अपील की है.

09 नवंबर 2008

महामंदी की मार

पूंजीवादी व्यवस्था जिस तरह मुनाफा कमाने के लिए काम करती है उसकी कार्यपद्धति में ही आज के मंदी के बीज छिपे हुए हैं.इसलिए हमें विकल्प के तौर पर ऐसी व्यवस्था तलाशनी होगी जहाँ उत्पादन मुनाफे के लिए नही मानव जाति के समग्र विकास के लिए हो। यह बात युवा संवाद द्वारा आयोजित परिचर्चा "आर्थिक मंदी की मार और विकल्प का प्रश्न " में सार रूप में निकल कर सामने आयी.
आधार वक्तव्य देते हुए अशोक कुमार पाण्डेय ने समयांतर में प्रकाशित सचिन के लेख को उद्धरित करते हुए सवाल उठाया की अगर सरकारें मुसीबत में पूंजीपतियों को जनता के पैसों से बेल आउट पैकेज दे सकती हैं तो जनता को बचाने के लिए पूंजीपतियों के धन का उपयोग क्यों नही किया गया ? चर्चा में सी पी आई के जिला सचिव राजेश शर्मा , नीला हार्डिकर , डॉ सीमा शर्मा, डॉ अन्नपूर्ण भदोरिया ने बात को आगे बढ़ते हुए कहा कि यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले दो दशकों में कामगारों कि उत्पादकता और कीमतें बढ़ी लेकिन मजदूरी उस अनुपात में नही बढ़ी जिससे लोगों कि क्रय शक्ति घट गयी और अति उत्पादन हो गया जिसने मंदी को जन्म दिया।इस मंदी से बचने के लिए सरकार पूंजीपतियों कि मदद कर रही है। आम लोगों के लिए कुछ नही किया जा रहा है जिससे बेकारी बढ़ रही है इससे भविष्य और कठिन होगा ।
बाद में यह तय किया गया कि जनता के बीच इसे लेकर एक अभियान चलाया जाए।यह भी तय किया गया की युवा दखल का अगला अंक महा मंदी पर विशेषांक निकला जाए.