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03 मई 2010

पुस्तक लोकार्पण और परिचर्चा की रिपोर्ट

पुस्तक लोकार्पण का दृश्य 

समाजवाद मानव की मुक्ति का महाआख्यान है। पूंजीवाद की आलोचना का आधार सिर्फ़ उसकी आर्थिक प्रणाली नहीं बल्कि उसके सामाजिक-सांस्कृतिक आयाम भी हैं। इसने समाज को अमानवीय बना दिया है। औरतों, दलितों और ग़रीबों की ज़िन्दगी इस व्यवस्था में लगातार बद्तर हुई है। सांस्कृतिक क्षेत्र को इसने इतना प्रदूषित कर दिया है कि मनुष्य की प्राकृतिक प्रतिभा का विकास इसके अंतर्गत असंभव है। इसीलिये व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक आमूलचूल लड़ाई लड़े बिना इन मुद्दों पर अलग-अलग लड़ाईयां नहीं लड़ी जा सकतीं। आज ज़रूरत मार्क्सवाद की गतिमान व्याख्या तथा नई सामाजार्थिक हक़ीक़त के बरक्स इसे लागू किये जाने की है। अशोक की किताब मार्क्स जीवन और विचार इस लड़ाई का ही एक हिस्सा है जो नये पाठकों और युवा पीढ़ी का मार्क्स से आलोचनात्मक परिचय कराती है। मई दिवस के अवसर पर ग्वालियर में युवा संवाद द्वारा आयोजित परिचर्चा हमारे समय में समाजवाद में हिस्सेदारी करते हुए जाने-माने संस्कृतिकर्मी प्रो शम्सुल इस्लाम ने कही।  

कमल नयन काबरा जी
परिचर्चा में हिस्सेदारी करते हुए वरिष्ठ अर्थशास्त्री कमल नयन काबरा ने कहा कि आज़ादी के बाद से ही विकास का जो माडल अपनाया गया वह व्यापक आबादी नहीं बल्कि एक सीमित वर्ग के हाथों में सत्ता तथा अर्थतंत्र के नियंत्रण को संकेन्द्रित करने वाला था। जिसे समाजवाद कहा गया वह वस्तुतः राज्य पूंजीवाद था। गांवों और शहरों के ग़रीबों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रही। समाजवाद का मतलब है एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सत्ता वास्तविक अर्थों में जनता के हाथ में रहे। आज रूस या चीन की कार्बन कापी नहीं हो सकती और नयी समाजवादी व्यवस्था को आज की सच्चाईयों के अनुरूप स्वयं को ढालना होगा। भूमण्डलीकरण के नाम पर जो प्रपंच रचा गया है अशोक उसे शोषण के अभयारण्य में बख़ूबी खोलते हैं।

कार्यक्रम का आरंभ शम्सुल इस्लाम, गैरी तथा अन्य साथियों द्वारा गाये गये गीत लाल झण्डा ले के हम आगे बढ़ते जायेंगे' से हुआ। इस अवसर पर युवा कवि, लेखक अशोक कुमार पाण्डेय की हाल ही में प्रकाशित दो किताबों, मार्क्स जीवन और विचार तथा शोषण के अभयारण्य भूमण्डलीकरण के दुष्प्रभाव और विकल्प का सवाल का लोकार्पण अथिति द्वय और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश दीक्षित द्वारा किया गया। पुस्तक परिचय देते हुए युवा कहानीकार जितेन्द्र विसारिया ने इसे मार्क्सवाद को समझने की ज़रूरी किताब बताया, वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी डा मधुमास खरे ने कहा कि यह छोटी सी किताब प्रगति प्रकाशन से छपने वाली उन किताबों की याद दिलाती है जिन्हें पढ़कर हमारी पीढ़ी ने मार्क्सवाद सीखा। अशोक ने कम्यूनिस्ट आंदोलनत का संक्षिप्त इतिहास लिखकर एक बड़ी ज़रूरत को पूरा किया है। युवा संवाद के संयोजक अजय गुलाटी ने कहा कि ये एक सक्रिय कार्यकर्ता की किताबें हैं जिन्हें आम जनता के लिये पूरी संबद्धता के साथ लिखा गया है। शोषण के अभयारण्य दूरुह माने जाने वाले विषय अर्थशास्त्र पर इतने रोचक तरीके से बात करती है कि इसे कोई भी पढ़कर अपनी अर्थव्यवस्था को समझ सकता है। लेखकीय वक्तव्य में अशोक पाण्डेय ने कहा कि किताब दरअसल बस वैसी ही होती है जैसा उसे पाठक समझता है। लिखना मेरे लिये इस लड़ाई का ही हिस्सा है और अगर ये किताबें उसमें कोई भूमिका निभा पायें तभी इनकी सार्थकता है। समाजवाद मेरे लिये एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें मौज़ूदा व्यवस्था से अधिक शांति हो, अधिक समृद्धि हो, अधिक लोकतंत्र और अधिक समानता। मुझे नहीं लगता कि उसकी लड़ाई आज पुराने तरीकों या फिर हिंसात्मक आंदोलनों से लड़ी जा सकती है।

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रकाश दीक्षित ने कहा कि अशोक का जुझारुपन और उसकी बैचैनी इन किताबों में साफ़ महसूस की जा सकती है। इसीलिये ये किताबें रोचक हैं और आपसे लगातार सवाल करती हैं। आज बाज़ार ने मध्य वर्ग को पूरी तरह भ्रष्ट बना दिया है और जो अधिकार संघर्षों के बाद हासिल हुए थे वे अब छीन लिये गये हैं। आज इस लड़ाई के लिये और अधिक प्रतिबद्ध संघर्ष की ज़रूरत है।

कार्यक्रम में साहित्यकार वक़ार सिद्दीकी, पवन करण, प्रदीप चौबे, ज़हीर क़ुरैशी, मुस्तफ़ा ख़ान, सत्यकेतु सांकृत, जी के सक्सेना, संतोष निगम, पारितोष मालवीय, इण्डियन लायर्स एसोसियेशन के गुरुदत्त शर्मा, अशोक शर्मा, मेडिकल रिप्रेज़ेन्टेटिव यूनियन के राजीव श्रीवास्तव, गुक्टु के ओ पी तिवारी, एस के तिवारी, डी के जैन, जे एस अलोरिया सी पी आई के सतीश गोविला, स्त्री अधिकार संगठन की किरण, बेबी चौहान, पत्रकार राकेश अचल सहित शहर के तमाम बुद्धिजीवी, ट्रेडयूनियन कर्मियों, छात्रों तथा आम जनों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की। संचालन अशोक चौहान ने किया और आभार प्रदर्शन फिरोज़ ख़ान ने।

30 अप्रैल 2010

मज़दूर यानि पुरुष मज़दूर?

( आज मई दिवस है यानि कि दुनिया भर के कामगारों के संघर्ष और बलिदान को याद करने का दिन। लेकिन विमर्शों के उत्तर आधुनिक दौर में कुछ ऐसा प्रपंच रचा गया है कि लोगों की एक्सक्लूसिव पहचानों पर तो बहुत ज़ोर है पर सामूहिक पहचाने धुंधली हो गयी हैं। या तो आप दलित हैं, या ग़ैर दलित, नारी, मज़दूर या फिर कुछ और। लेकिन दरअसल एक जटिल समाज में हमारी सामूहिक पहचाने होती हैं और साझे संघर्ष। स्त्री अधिकार संगठन से जुड़ी रुपाली सिन्हा की यह टिप्पणी 8 मार्च और  1 मई के बीच के ताने-बाने को बयान करती है। कामगार दिवस पर क्रांतिकारी अभिनंदन सहित)

मई दिवस और महिलाएं

यह हम सबका दिन है!
दुनियाभर के मुक्ति संघर्षों अत्याचार और उत्पीडन के खिलाफ होने वाले संघर्षों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होने मर्दो के कंधे से कंधा मिलाकर संघर्षों में अपनी भागीदारी निभाई है। मई दिवस का इतिहास भी मर्दों के साथ-2 औरतों के संघर्षों से लिखा गया है। मजदूर दिवस दुनिया भर के मजदूरों की आकांक्षाओं, अधिकारों और जीत का दिन है। इस दृष्टि से अमेरिका के मजदूर आंदोलन ने कामगार वर्ग को दो अंतर्राष्ट्रीय दिन दिए है आठ मार्च और एक मई।

19 वीं सदी के अंत तक यूरोप और अमेरिका में औद्योगिक कामगारों के रुप मे औरतों ने अपनी जगह बना ली थी। हालांकि उनकी स्थिति और उनके काम की परिस्थितियां मर्दो की तुलना में बहुत बदतर थीं। मार्च 1857 में कपडा उद्योग में काम करने वाली औरतों ने बेहतर काम की परिस्थितियों, काम के 10 घंटे और बराबरी के अधिकार के लिए प्रदर्शन किया जिसका बुरी तरह दमन किया गया। मार्च 1908 में कामगार औरतों का एक और बडा प्रदर्शन हुआ। यह प्रदर्शन बालश्रम पर रोक और औरतों के मताधिकार की मांग को ले कर था। फिर दमन हुआ। 1909 में गारमेंट मजदूरिनों ने अमेरिका में आम हडताल कर दी। 20 से 30 हजार कामगारिनों ने बेहतर वेतन और बेहतर काम की परि0 के लिए भयंकर ठंड के 13 हफ्ते संघर्ष किये। 1903 में महिला ट्रेड यूनियन की स्थापना हुई जिसने गिरफतार हडतालियों को जेल से छुडाने की व्यवस्था की। इस संघर्ष को विशेष दिन का दर्जा दिलाने में क्लारा जेटकिन के प्रयासों से सभी परिचित हैं। 

अंतर्राष्टीय महिला दिवस ने कामगारों के संघर्ष को ताकत दी। रूस की फरवरी क्रांति में इसने महत्वपूर्ण उत्प्रेरक का कार्य किया।

19वीं सदी हलचलों का युग थी आंदोलनों का ज्वार था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विचार भी यहीं पनपा था। जब पुरूष कामगार 10 से 8 घंटे काम की मांग कर रहे थे महिला कामगार 1857 में 16 से 19 की मांग कर रही थी। इससे पता चलता है कि औरतों के साथ हर क्षेत्र में भेदभाव होता रहा है।  औरतें एक तरफ अपनी बराबरी और अधिकारों की लडाई लड रही थी दूसरी ओर पुरुष कामगारों के साथ कंधे से कंधा मिला कर संघर्ष में बराबरी से हिस्सेदारी भी कर रही थी। 

 महिलाओं के इस ऐतिहासिक संघर्ष को महिलाओं के संघर्ष के रुप में सीमित करके आंका जाता है जबकि वह भी उस व्यापक मजदूर आंदोलन का हिस्सा था जिसने पूरी दुनिया के मजदूरों को एक नई ताकत और दृष्टि दी थी। ठीक उसी प्रकार जैसे मई दिवस के संघर्ष को अनकहे ही पुरुष कामगारों का संघर्ष मान लिया जाता है। 8मार्च का आंदोलन राजनीतिर्क आर्थिक और सामाजिक अधिकारों का संघर्ष था जो समूची मानवजाति से स्वयं को जोडता था। यह केवल ‘औरतों का मुद्दा’ नहीं था। 

 उदाहरण के लिए जब 1866 में अमेरिका में ‘ नेशनल लेबर यूनियन की स्थापना हुइ थी तो बहुत सी महिला श्रमिक इसका हिस्सा थीं। अमेरिकी कांग्रेस ने 1868 में आठ घंटे के कार्यदिवस का जो कानून पास किया उसकी उत्प्रेरक नेता थीं बोस्टन की मेकेनिस्ट इरा स्टीवर्ड। 

 पिछले कुछ सालों से हम देख रहें है कि महिला दिवस को पत्नी दिवस के रुप में मनाना, कार्ड पर सुंदर कोमल कविताएं लिख कर देना, उपहार देना आदि का प्रचलन बढता जा रहा है। महिलाओ के जुझारु संघर्षों को बेहतर समाज के लिए होने वाले संघर्षो के हिस्से के रुप में नहीं देखा जाता। इस ऐतिहासिक संघर्ष ने यह साबित किया कि महिलाओं की भी राजनीतिक भूमिका है और इसे निभा सकने में वे सक्षम भी हैं। हालाॅकि महिला कामगारों के अधिकारों की हमेशा ही उपेक्षा हुई है। आज भी उनके साथ पुरुष कामगारों की तुलना में अधिक शोषण और उत्पीडन हिंसा और गैरबराबरी का शिकार होना पडता है। संगठित असंगठित दोनों क्षेत्रों में लगभग यही स्थिति है। इस दृष्टि से महिला मजदूरों को दोहरा संघर्ष करना होगा। एक तरफ पितृसत्तात्मक शोषण से तो दूसरी ओर एक कामगार के रुप में

आज महिला कामगारों को संगठित करने की जरुरत को समझना होगा जो पितृसत्तात्मक मूल्यों को चुनौती देने के साथ ही व्यापक मजदूर आंदोलन का भी हिस्सा बनें।




नोट - आज युवा संवाद भोपाल में शाम छः बजे 'मज़दूरों के लिये एक दुनिया' विषय पर प्रो रिज़वानुलहक़ का व्याख्यान  सेंट मेरी स्कूल के पास सेवासदन में आयोजित कर रहा है।
कल दो मई को युवा संवाद, ग्वालियर शाम छः बजे से 'हमारे समय में समाजवाद' विषय पर प्रो कमल नयन काबरा तथा प्रो शम्सुल इस्लाम के व्याख्यान  उत्तम वाटिका में आयोजित करेगा।


मई दिवस के मुताल्लिक तमाम अखबारों और प्रिंट मीडिया के द्वारा इसकी कुछ ऐसी छवि प्रस्तुत की जाती रही है, मानो इस श्रम दिवस से सिर्फ वे ही सरोकार रखते हैं, जो चौराहों पर फावड़े और अन्य औजारों के साथ मालिक का इंतज़ार कर रहे होते हैं. मई दिवस के परिप्रेक्ष्य में अखबार पर आई तमाम ख़बरों को सिरे से पढ़ा जाए, तो मजदूर होने की अवधारणा और परिभाषाओं को न ही छुआ गया है, न ही प्रस्तुत किया गया है, दृष्टिगत बोध में रिक्शे चालक, चौराहों पर खड़े मजदूर, कामगार महिलाओं के चित्रों को मजदूरों के सिम्बोल की तरह प्रस्तुत किया जाता रहा है, जो सिर्फ वर्ष के एक दिन ख़ास तरीके से बस याद करने हेतु ही काम आते हैं. अन्य तमाम बातों से उनका सरोकार न कराया जाता है, न ही ज़रूरत समझी जाती है. मई दिवस उन सभी शहीदों को याद करने का भी दिन है, और मजदूर वर्ग और उनकी चेतना को सही सलीकों से सामने लाना भी  है. जिसमें उभर रहे नए वर्ग को इस गौरव भरे दिन के बारे में सही जानकारी और सही परिभाषाओं का अभाव न हो.

जबलपुर शहर से ७० किलोमीटर दूर ग्राम टिकरिया (जिला मंडला) में एक आम जनसभा रखी गई है. जो मजदूर दिवस और उसके गौरवशाली इतिहास के बारे में स्कूलों, और जिले के कुछ प्रबुद्ध जनों के साथ इस चेतना का प्रसार करेगी. १ मई २०१० को दोपहर ४ बजे  "मजदूर,मार्क्स और महिलाएं" विषय पर जागरूक छात्रों के बीच चर्चा रखी जाएगी. और कविता पोस्टरों के साथ प्रगतिशील कवियों की रचनाओं को छात्रों के बीच वितरण किया जाएगा.

आयोजक - युवा संवाद जबलपुर, नागरिक अधिकार मंच 
                निशांत कौशिक, सत्यम पाण्डेय,अजय यादव  

15 अप्रैल 2010

हमारा समय और समाजवाद

दुनिया के मज़दूरों एक हो!

युवा संवाद तथा स्त्री अधिकार संगठन  ने पिछले साल की ही तरह इस साल भी मई दिवस मनाने का निश्चय किया है। इस साल हमने  ' हमारे समय में समाजवाद' विषय पर एक परिचर्चा आयोजित करने का इरादा किया है जिसमें जाने माने अर्थशास्त्री प्रो कमल नयन काबरा तथा प्रतिबद्ध राजनीति शास्त्री एवं संस्कृतिकर्मी प्रो शमसुल इस्लाम की प्रमुख भागीदारी होगी। आगामी दो मई को रेसकोर्स रोड स्थित सैनिक पेट्रोल पंप के पास उत्तम वाटिका में शाम छह बजे से होने वाली इस परिचर्चा में शहर के तमाम सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता , संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार तथा आम जन हिस्सेदारी करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार प्रो प्रकाश दीक्षित करेंगे।

इस अवसर पर अशोक कुमार पाण्डेय की सद्य प्रकाशित किताबों 'मार्क्स- जीवन एवं विचार' तथा 'शोषण के अभयारण्य' का लोकार्पण भी होगा। 

29 अप्रैल 2009

इन्कलाब जिंदाबाद


मजदूर दिवस पर युवा संवाद का क्रांतिकारी अभिनन्दन

Discussion and Cultural evening on 1 May 2009 [Mazdoor Diwas ]

Dear Friends




Yuva Samvad Bhopal going to organized a discussion and cultural evening on 1 May 2009 [Mazdoor Diwas ] at 11 No resourse centre, Sai baba Nagar Bhopal। Sathi Yogesh Dewan will Facilitate the discussion







Discussion and cultural evening

Time…5.30 To 8 Pm
Date…1 May 2009
Place …Community centre, Sai baba Nagar Bhopal

All friends are invited to join the programme

Yuva Samvad
9425667860

भारत का मजदूर आन्दोलन : कल और आज

युवा संवाद, ग्वालिअर द्वारा आयोजित परिचर्चा

१० मई,रविवार

9425787930