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25 मार्च 2011

मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ का शोक प्रस्ताव


प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव डा. कमलाप्रसाद का निधन

1938-2011


कमलाप्रसादजी ने पूरे देश के प्रगतिशील और जनपक्षधरता वाले रचनाकारों को उस वक्त देश में इकट्ठा करने का बीड़ा उठाया जब प्रतिक्रियावादी, अवसरवादी और दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता, यश और पुरस्कारों का चारा डालकर लेखकों को बरगलाने का काम कर रहीं हैं। उनके इस काम को देश की विभिन्न भाषाओं और विभिन्न संगठनों के तरक्कीपसंद रचनाकारों का मुक्त सहयोग मिला और एक संगठन के तौर पर प्रगतिशील लेखक संघ देश में लेखकों का सबसे बड़ा संगठन बना। इसके पीछे दोस्तों, साथियो और वरिष्ठों द्वारा भी कमांडर कहे जाने वाले कमलाप्रसादजी के सांगठनिक प्रयास प्रमुख रहे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से लेकर, पंजाब, असम, मेघालय, प. बंगाल और केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में संगठन की इकाइयों का पुनर्गठन किया, नये लेखकों को उत्प्रेरित किया और पुराने लेखकों को पुनः सक्रिय किया। उनकी कोशिशें अनथक थीं और उनकी चिंताएँ भी यही कि सांस्कृतिक रूप से किस तरह साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता और संकीर्णतावाद को चुनौती और शिकस्त दी जा सकती है और किस तरह एक समाजवादी समाज का स्वप्न साकार किया जा सकता है। ‘वसुधा’ के संपादन के जरिये उन्होंने रचनाकारों के बीच पुल बनाया और उसे लोकतांत्रिक सम्पादन की भी एक मिसाल बनाया।

कमलाप्रसादजी रीवा विश्वविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, मध्य प्रदेश कला परिषद के सचिव रहे, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष रहे और तमाम अकादमिक-सांस्कृतिक समितियों के अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे, अनेक किताबें लिखीं, हिन्दी के प्रमुख आलोचकों में उनका स्थान है, लेकिन हर जगह उनकी सबसे पहली प्राथमिकता प्रगतिशील चेतना के निर्माण की रही। उनके न रहने से न केवल प्रगतिशील लेखक संघ को, बल्कि वंचितों के पक्ष में खड़े होने और सत्ता को चुनौती देने वाले लेखकों के पूरे आंदोलन को आघात पहुँचा है। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संगठन तो खासतौर पर उन जैसे शुरुआती कुछ साथियों की मेहनत का नतीजा है। उनके निधन से पूरे देश के लेखक, रचनाकार, पाठक, साहित्य व कलाओं का वृहद समुदाय स्तब्ध और शोक में है।

कमलाप्रसादजी ने जिन मूल्यों को जिया, जिन वामपंथी प्रतिबद्धताओं को निभाया और जो सांगठनिक ढाँचा देश में खड़ा किया, वो उनके दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ने वाले लोग सामने लाएगा। और प्रेमचंद, सज्जाद जहीर, फैज, भीष्म साहनी, कैफी आजमी, परसाई जैसे लेखकों के जिन कामों को कमलाप्रसादजी ने आगे बढ़ाया था, उन्हें और आगे बढ़ाया जाएगा। मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की राज्य कार्यकारिणी उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करती है।

पुन्नीसिंह विनीत तिवारी शैलेन्द्र शैली
(अध्यक्ष) (महासचिव) (कार्यकारी महासचिव)

जनपक्ष परिवार तथा दख़ल विचार मंच भी साथी कमला प्रसाद जी के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तथा उनकी जुझारु प्रतिबद्धता को सलाम करते हैं।

08 अप्रैल 2010

श्रद्धांजलि के स्वर में विलाप

कौन चाहता है इन चिरागों को बुझाना?

  मुझे भी दुख है उन ग़रीब जवानों की असमय मृत्यु पर…

  तब भी होता है जब कहीं दुबकी सी ख़बर  होती है कि आठ नक्सली मारे गये...

  तब भी जब दंगे में मारे गयी लाशें अख़बारों में लहू बहाती हैं…

  यह सारा हमारा ही ख़ून है…   
                      


काश कि असली क़ातिल मारे जायें कि हम ज़िन्दा रह सकें !!!