- शमशाद इलाही अंसारी
इस्लाम के हवाले से या किसी दूसरे मज़हब के हवाले से आप इस लडाई को नहीं लड सकते..कुरान शरीफ़ के हवाले से अल -कायदा ने दुनिया भर में जिन लडाकों को भर्ती किया है इसके लिये उन्होंने भी तर्क दिये थे और बाकायदे पढे लिखे लोगों का दिमाग साफ़ किया था. मैं किसी भी मज़हब के ऐतबार से जिहाद नहीं लड सकता..क्योंकि अगर तारीख पढें तब पता चलता है कि मरने वाला और मारने वाला दोनों के हाथ में कुरान शरीफ़ था. (हज़रत अली हत्याकाण्ड से लेकर सलमान तासीर की हत्या तक) इस्लाम के नुक्ते नज़र से यह लडाई नहीं लडी जा सकती. अभी वक्त आ गया है धर्म को निजी मसलो तक महदूद कर देने का...जो सडक पर दिखाई दे वह धर्म नहीं, जो भी फ़िज़ा में घुले वह राजनीति है.
मज़हबी आतंक के खिलाफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ वाम ताकतें लड सकती हैं और निर्णायक फ़तह भी उन्ही की होगी. चाहे शिव सेना हो या आर.एस.एस. मुजाहिदीन, अल कायदा, हमस या हिज़्बोल्लाह,ब्रदरहुड आदि ये तमाम ताकतें जनता की दुश्मन हैं, ये तब-तब ताकतवर हुए जब जब हमने लडना बंद कर दिया या हमारी पांते कमजोर हो गयी- चाहे भारत का सवाल हो या फ़लस्तीन का.
रही बात इन धमाकों की...असीमानंद के खुलासे के बाद यह भरोसे से कहना कि यह काम मुसलमान फ़िरकापरस्त ताकतों का ही है, शायद जल्दबाजी होगी. जांच के बाद पता चला कि शिव सेना को कोई घडा इसमे लिप्त पाया गया तब क्या करोगे? चिदांबरम और उसकी व्यवस्था एक धोखा है...क्या हम भूल गये किस तरह इसने आज़ाद की हत्या करायी, ये मेरा नहीं स्वामी अग्निवेश का भी संशय है.
निर्दोष लोगों की हत्यायें करना...कोई बुजदिल और नपुंसक व्यक्ति अथवा संगठन ही कर सकता है, इनकी शिनाख्त करना और समाज में इन्हे अलग थलग करना एक बडा काम है, बडे फ़लक की सोच से लैस ही इस चुनौती का सामना कर सकता है. आपने यह लडाई शुरु की है..मुहीम शुरु की है..स्वागत आपका..यह काम सराहनीय है. हम सभी इसमें शरीक हैं और होने चाहिये..गली कूचों से लेकर मंदिर -मस्जिद और संसद तक यह सफ़र आसान नहीं