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14 जुलाई 2011

मज़हबी आतंक के खिलाफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ वाम ताकतें लड सकती हैं



  • शमशाद इलाही अंसारी 

इस्लाम के हवाले से या किसी दूसरे मज़हब के हवाले से आप इस लडाई को नहीं लड सकते..कुरान शरीफ़ के हवाले से अल -कायदा ने दुनिया भर में जिन लडाकों को भर्ती किया है इसके लिये उन्होंने भी तर्क दिये थे और बाकायदे पढे लिखे लोगों का दिमाग साफ़ किया था. मैं किसी भी मज़हब के ऐतबार से जिहाद नहीं लड सकता..क्योंकि अगर तारीख पढें तब पता चलता है कि मरने वाला और मारने वाला दोनों के हाथ में कुरान शरीफ़ था. (हज़रत अली हत्याकाण्ड से लेकर सलमान तासीर की हत्या तक) इस्लाम के नुक्ते नज़र से यह लडाई नहीं लडी जा सकती. अभी वक्त आ गया है धर्म को निजी मसलो तक महदूद कर देने का...जो सडक पर दिखाई दे वह धर्म नहीं, जो भी फ़िज़ा में घुले वह राजनीति है.

मज़हबी आतंक के खिलाफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ वाम ताकतें लड सकती हैं और निर्णायक फ़तह भी उन्ही की होगी. चाहे शिव सेना हो या आर.एस.एस. मुजाहिदीन, अल कायदा, हमस या हिज़्बोल्लाह,ब्रदरहुड आदि ये तमाम ताकतें जनता की दुश्मन हैं, ये तब-तब ताकतवर हुए जब जब हमने लडना बंद कर दिया या हमारी पांते कमजोर हो गयी- चाहे भारत का सवाल हो या फ़लस्तीन का.

रही बात इन धमाकों की...असीमानंद के खुलासे के बाद यह भरोसे से कहना कि यह काम मुसलमान फ़िरकापरस्त ताकतों का ही है, शायद जल्दबाजी होगी. जांच के बाद पता चला कि शिव सेना को कोई घडा इसमे लिप्त पाया गया तब क्या करोगे? चिदांबरम और उसकी व्यवस्था एक धोखा है...क्या हम भूल गये किस तरह इसने आज़ाद की हत्या करायी, ये मेरा नहीं स्वामी अग्निवेश का भी संशय है.

निर्दोष लोगों की हत्यायें करना...कोई बुजदिल और नपुंसक व्यक्ति अथवा संगठन ही कर सकता है, इनकी शिनाख्त करना और समाज में इन्हे अलग थलग करना एक बडा काम है, बडे फ़लक की सोच से लैस ही इस चुनौती का सामना कर सकता है. आपने यह लडाई शुरु की है..मुहीम शुरु की है..स्वागत आपका..यह काम सराहनीय है. हम सभी इसमें शरीक हैं और होने चाहिये..गली कूचों से लेकर मंदिर -मस्जिद और संसद  तक यह सफ़र आसान नहीं

17 दिसंबर 2010

सुरेन्द्र मोहन जी को श्रद्धांजलि

आज दोपहर में प्रो शमसुल इस्लाम के एक एस एम एस से यह दुखद सूचना मिली कि वरिष्ठ समाजवादी चिंतक सुरेन्द्र मोहन जी नहीं रहे। दख़ल विचार मंच उनको हार्दिक श्रद्धांजलि देता है। यहाँ यह लघु रिपोर्ट हिंदुस्तान लाईव से साभार 

प्रख्यात समाजवादी नेता एवं चिंतक तथा स्तंभकार सुरेन्द्र मोहन का शुक्रवार को नई दिल्ली में अपने निवास पर निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही प्रतिबद्ध विनम्र सज्जन तथा सत्ता से दूर रहने वाले राजनीतिज्ञों की आखिरी कडी़ टूट गई।

84 वर्षीय सुरेन्द्र मोहन ने सुबह 7.30 बजे के करीब नींद में ही अंतिम सांसे ले ली। उनका अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर दोपहर तीन बजे किया जाएगा। लोकनायक जयप्रकाश नारायण तथा डॉ. राममनोहर लोहिया के निकट रहे सुरेंद्र मोहन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव थे और देश में समाजवादी आंदोलन के नेताओं की आखिरी कडी़ थे। नीतीश कुमार, लालू यादव, रामविलास पासवान जैसे अन्य राजनीतिक उनके शिष्यों में थे।

देश में जब आपातकाल लगा था तो वह करीब 19 महीने जेल में रहे 1977 में जनता पार्टी के महासचिव एवं प्रवक्ता भी थे। चार दिसम्बर 1926 को अम्बाला शहर में जन्मे सुरेन्द्र मोहन 1978 से 1984 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे तथा 1996-98 में खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष भी रहे।