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02 फ़रवरी 2010

किताबों के बीच से कौन कमबख्त आना चाहता था...

पंकज बिष्ट, महेश कटारे, शिल्पायन वाले ललित जी और अपन शिल्पायन के स्टाल पर

चार दिन ऐसे बीते कि जैसे चार घण्टे रहे हों।
चारों तरफ़ किताबें, किताबों के शौक़ीन, किताबों की ही बातें…

प्रोफ़ेसर शमसुल इस्लाम, नीलिमा जी,सत्येन्द्र, शिल्पी, पवन मेराज, लाल बहादुर वर्मा और अपन

शब्दों की खुशबू जैसे मदमस्त किये हुए थी…गया था बस एक पिट्ठू लिये लौटा तो चार भरे हुए बैग्स के साथ। मुक्तिबोध और निराला की रचनावलियां, तमाम कविता संकलन, इतिहास, दर्शन और आलोचना की ढेरों किताबें, अनुवाद और पी पी एच से कुछ भूली बिसरी अनमोल किताबें।

बड़ी-बड़ी किताबों के साथ अपन!

और इस बार तो स्टाल पर अपनी किताबें भी लगीं थीं। शिल्पायन से लेखों का संग्रह 'शोषण के अभयारण्य' और संवाद से 'मार्क्स- जीवन और विचार' तथा 'प्रेम'… तो मज़ा दुगना हो गया।

दो साल इसी माहौल की स्मृतियों के सहारे गुज़र जायेंगे। यह विश्वास पुख़्ता हुआ कि शब्द मर नहीं सकते!



16 दिसंबर 2009

प्यार एक भयावह मानसिक रोग है..




(पिछले दिनों यूं ही एक और काम कर डाला --- प्रेम पर कोई ढाई-तीन सौ कोटेशन्स का अनुवाद। और अब ये एक साथ किताब के रूप में आ रहे हैं। कवर पेज़ यहां लगा रहा हूं और कुछ मज़ेदार कोटेशन भी । ऊपर शीर्षक के रूप में दिया गया कोट प्लेटो का है )

प्रेम दीवानावार चाहे जाने की दीवानावार चाहत है -- मार्क ट्वेन

प्यार में पडने का मतलब केवल इतना है - कल्पनाओं को ख़ुला छोड देना और विवेक को क़ैद कर लेना -- हेलन रोलैण्ड

अगर हम प्रेम के सुख की तलाश में हैं तो दीवानगी कभी-कभी होनी चाहिये और विवेक सतत -- राबर्ट्सन डेविस

महान दीवानगियां नहीं होतीं मेरी जान,वे बस झूठी कल्पनायें होती हैं। जो होते हैं वे हैं सामान्य प्रेम जो थोडे दिन चलते हैं या फिर ज़्यादा दिन -- आग्ना मैग्नानी

मै जीना नहीं चाहता- मै पहले प्यार करना चाहता हूं फिर जीना -- ज़ेल्डा फ़िट्ज़गेराल्ड

कोई पुरुष जो एक आकर्षक स्त्री को चूमते हुए गाडी चला सकता है उसके बारे में इसी एक वज़ह से कहा जा सकता है कि वह चुम्बन को यथेष्ट महत्व नहीं दे रहा -- आंईस्टीन

17 सितंबर 2009

पहली किताब का इंतज़ार....

पहली किताब के बारे में बताते हुए पाब्लो नेरुदा ने लिखा है कि जब प्रकाशक के यहाँ से उसे लेकर वो आ रहे थे तो जैसे बच्चों की तरह व्यग्र थे...स्याही की उस खुशबू से मदमस्त

हम क्या कहें ... अभी तो कवर देख के ही मदमस्त हो रहे हैं।
आज का रस रंजन इसी के नाम