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09 मार्च 2013

वैज्ञानिक चीजों से अपने जीवन को खूब आधुनिक बना चुके तथाकथित शिक्षित वर्ग के ये लोग आज भी वैज्ञानिक चेतना से कोसों दूर क्यों हैं ?

आशीष देवराड़ी 

मैं  शिवरात्री के  पर्व को आस्थावादी नजरिये से देखने से इतर एक दूसरे ही नजरिये से देखना पसंद करता हूँ   वह दूसरा नजरिया है ' हमारी शिक्षा की असफलता के रूप में  ' शिवरात्री के पर्व और शिक्षा की असफलता के बीच क्या सम्बन्ध हो सकता हैं यह पूछे जाने की आवश्यकता हैं संबध हैं ,बिलकुल हैं और वह यह कि हमारी शिक्षा वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में पूर्णतः असफल रही हैं 

गरीब अशिक्षितों की बात ही क्या की जाए जब हमारे समाज का शिक्षित और साधन सम्प्पन तबका आज व्रत  रखने और मंदिरों में लम्बी लाइनों में लगने को आतुर हैं  वह रेलवे की टिकट खिड़की पर आधे मिनट खड़े होने पर बैचैन होने लगता हैं पर यहाँ वह घंटो बिना नाक सिकोड़े घंटों खड़ा रह लेता हैं  कपड़ों से लेकर कारों तक उसे सब विदेशी पसंद हैं पर मंदिरों की लम्बी कतारे उसे भारतीय ही पसंद आती हैं 


दरअसल समाज के शिक्षित वर्ग ने हमेशा देश को धोके में रखा हैं। वह बात कुछ करता हैं और आचरण कुछ   बेचारा गरीब और अशिक्षित तो अपनी परिस्तिथियों के मारे अंधविश्वास के जाल में जकड़ा हुआ हैं पर समाज का वह तबका जो न्यूनतम श्रम में अधिकतम उपभोग करता हैं और खुद को शिक्षित कहता हैं क्यों इस अंधविश्वासों से खुद को मुक्त नहीं कर सका हैं ? वैज्ञानिक चीजों से अपने जीवन को खूब आधुनिक बना चुके तथाकथित शिक्षित वर्ग के ये लोग आज भी वैज्ञानिक चेतना से कोसों दूर क्यों हैं ? और हम चिंतित रहते हैं अशिक्षितों को शिक्षा देने के लिए पर शिक्षितों का हाल देखने की फुर्सत और समय भी हमें अब जुटाना चाहिए 

कमी शायद हमारी शिक्षा में ही रही हैं  बड़ी बड़ी डिग्रियां और विश्वविद्यालीय शिक्षा सामाजिक बुराइयों से लड़ने और  समाज को बेहतर दिशा में ले जाने के लिए हमारी रत्ती भर भी सहायता नही करती  वह वैज्ञानिक नजरियों को विकसित नही करती। किसी भी घटना को तर्क के आधार पर समझने की  क्षमता पैदा  नही करती वह समाज को जस का तस बनाएं रखने वाले पैरोकारों को पैदा करने का कारखाना मात्र हैं  हमारा शिक्षा का चरित्र यथास्थितिवादी हैं  इसलिए आज जब हम शिक्षा को जन जन तक पहुचाने के लिए चिंतिंत हैं हमें इस बात पर सर्वप्रथम विचार करना चाहिए कि क्या हमारी शिक्षा हमें वह दे पा रही हैं जिसकी हमें उससे उम्मीद हैं , यदि नही तो हम क्यों शिक्षा के अधिकार और साक्षरता के आकड़ों पर मोहित हों ? ऐसी शिक्षा से तो बेहतर हैं मेरा देश और मेरे अशिक्षित लोग 

25 मई 2012

निर्मल बाबा ही नहीं ...हम और हमारा समाज भी पाखंडी ही है !!!



  • आशीष देवराड़ी

ग्लोबलाइजेशन और आधुनिकीकरण के इस दौर में अभी हमारे अंधविश्वासों के लिए काफी स्पेस मौजूद है | क्या पढ़े लिखे और क्या गंवार, दोनों ही अंधविश्वास के जाल में जकड़े हुए है | एक के लिए पण्डित मंदिर में उपलब्धय है तो दूसरे के लिए उसके मोबाइल पर ,एक के लिए तीर्थ -दर्शन है तो दूसरे के लिए वर्चुअल-दर्शन ,एक के भगवान खुली छत के नीचे है जो दूसरे के केमरों की सुरक्षा के बीच वातानुकूलित कमरों में बंद | बिन पढ़े लिखो कि बात तो समझ आती है जो अज्ञानता और मजबूरीवश इन अंधविश्वासों में उलझे हुए है परन्तु यदि तथाकथित आधुनिक पढ़े-लिखे लोग भी  इन अंधविश्वासों से पार ना पा सके तो ये उनकी शिक्षा (या कहे हमारी शिक्षा व्यवस्था ) और आधुनिकता पर बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह लगाता है |ये बात रेखांकित कि जानी चाहिए कि वर्तमान सन्दर्भ में  पढ़ने-लिख लेने का मतलब अंधविश्वासों से मुक्ति कतई नहीं है |पढ़े लिखो में अपने अन्धविश्वास पलते है और ये अन्धविश्वास आये दिन हमें अपने आस-पास दिखलाई पड़ते है|                                                                                                  अभी हाल ही में ११/११/११ को ऐसा ही कुछ देखने को मिला | कई पंडितो ने इस तारीख को खरीददारी की दृष्टि से शुभ बताया जिसे तकरीबन तमाम अखबारों ने पहले पन्ने पर जगह दी | इस दिन आम दिनों की अपेक्षा अधिक विज्ञापन भी प्रकाशित हुए | खरीददारी के इस शुभ मुहूर्त को भुनाने में पढ़ा लिखा मध्यवर्ग ही सबसे ज्यादा आगे रहा |कपडे,मोबाइल ,एल.सी.डी, फ्रिज, वांशिग मशीन और भी ना जाने क्या-क्या खरीद लिया गया | कहने की जरुरत नहीं कि शुभ मुहूर्त के चक्कर में अन्धो ने चश्मे और गंजो ने कंघी खरीद ली |बिन जरुरत और बिन मतलब का सामान घर ला दिया गया |और इन सबके बाबजूद भी शुभ क्या हुआ भगवान जाने ???                                                                                       

हमारे अन्धविश्वास थोड़े बहुत थोड़ी ही है जिन्हें किसी एक लेख में लिखा जा सके बल्कि इनकी फेहरिस्त तो इतनी लंबी है कि जिसे लिखने में समुद्र की स्याही भी कम पड़ जाए | चौराहे की ट्रेफिक लाईट भी जिन्हें नहीं रोक पाती वे बिल्ली के रास्ता काटने पर रुक जाते है | किसी के छीक देने पर घर से बहार नहीं निकलते | नवजात बच्चो को जोंसन प्रोडक्ट  के अलावा काला टीका किस घर में नहीं लगाया जाता ?गाडी खरीदने पर मिठाई बाद में बाटी जायेगी ,पूजा पहले हो जाती है | नया कंप्यूटर घर आया नहीं कि उस पर साथिया बना दिया |इलेक्ट्रिक आयटमो पर  टीका और चावल लगाना आम बात है |और भी ना जाने क्या क्या ?                                                                                             

लोगो के अंधविश्वास को किसी और ने समझा हो ना समझा हो हमारे यहाँ के बाबाओं ने बखूबी समझा है | तभी तो पायलट बाबा से लेकर नित्यानंद तक सभी हमारे यहाँ पाए जाते है |सत्य साईं भी इसी अंधविश्वास की उपज ही तो है |सारे बाबाओं से एक कदम जाकर इस बाबा ने खुद को भगवान घोषित किया , फिर क्या था भक्तो का  तांता लग गया और शुरु हुआ ठगी का अंतहीन सिनसिला|अब जरा एक मिनट रूककर  ठन्डे दिमाग से सोचिये कि आजतक भगवान आया ही किस काम है और ये मात्र संयोग भर  नहीं हो सकता कि विश्वविजेता बनने का ख्वाब देखने वाले - सिकन्दर, हिटलर, अंग्रेज, चंगेज खाँ, नेपोलियन सब आस्तिक थे| सत्य साईं हवा से सोना और भभूत उत्पन्न करने का चमत्कार दिखाकर खुद के भगवान होने का प्रणाम देता था | लोगो के मर्ज का इलाज भभूत से करता था |चमत्कार और भगवान दो ऐसे विषय है जिनके बल पर इस मुल्क में अच्छी खासी भीड़ जुटाई जा सकती है |                                                                                                                                                                                            

शुभ मुहर्त , ज्योतिष ,अंक विद्या, हस्तरेखा विधा, कुंडली मिलान ,फेंग-शुई ,जादू टोना ,ताबीज ..सभी अंधविश्वास की  संतति है और पढ़े लिखे अभिजात्य लोगो की अतार्किक सोच ने इन्हें पोषित करने का काम बखूभी किया  है क्योंकि उसके पास ही है ऐसा कुछ जो इन्हें जाने अनजाने बढ़ावा दे रहे है ...और वोह है अर्थ | इन बाबाओं की अथाह सम्पति और हमारे धनवान होते मंदिर, पढ़े लिखे कुलीन लोगो की अंधविश्वासी मानसिकता का ठोस प्रमाण है क्यूकि अनपढ़-गरीब सात जन्मो में भी इन्हें पैसो से इतना लबरेज नहीं बना सकते जितना की ये आज है |याद कीजिये ११/११/११/ के तथाकथित शुभ-मुहर्त पर खरीददारी करने वाले किस वर्ग के लोग थे ???                                                                                         

दरअसल विज्ञान की प्रगति के चलते ये उम्मीद जागी थी कि धीरे -धीरे इस तरह के अंधविश्वासो से समाज मुक्त होता जाएगा | जबकि हुआ ठीक इसके उलट ही | आज ज्योतिषी , भविष्य-वक्ता ,पण्डित किसी खास जगह ही नहीं होते वे हमारे मोबाइल ,टेलीविजन ,इंटरनेट सभी जगह मौजूद है |                                                                                                  

आधुनिक लोग बहुत पाखंडी है |वे धर्म और पाखंड छोड़ते नहीं लेकिन बात विज्ञान और प्रगति की करते हैं |