धार्मिक कट्टरपंथ तथा आतंकवाद एक दूसरे के पूरक हैं। छः दिसंबर भारतीय संविधान तथा साम्प्रदायिक सद्भाव पर आधारित हमारी परम्परा के चेहरे पर बदनुमा दाग़ है। आर एस एस और उसके आनुसांगिक संगठनो ने सत्ता के लोभ में देश के भीतर जो धार्मिक उन्माद पैदा कर लोगों के बीच साम्प्रदायिक विभाजन किया वही आज आतंकवाद के मूल में है। मनमोहन सिंह कहते हैं की माओवाद देश के सम्मुख सबसे बड़ा खतरा है पर वास्तविकता यह है कि हमारे सम्मुख सबसे बड़ा खतरा धार्मिक कट्टरपंथ है। यह बातें आज युवा संवाद की पहलकदमी पर दिसंबर को आयोजित साम्प्रदायिकता और आतंकवाद विरोधी दिवस पर अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डा मधुमास खरे ने कही।
उल्लेखनीय है कि युवा संवाद, संवाद, स्त्री अधिकार संगठन , प्रगतिशील लेखक संघ, आल इंडिया लायर्स एसोशियेशन, जनवादी लेखक संघ, बीमा कर्मचारी यूनियन, गुक्टू, इप्टा सहित शहर के तमाम जनसंगठनों ने छः दिसंबर को सांप्रदायिकता और आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप मे मनाते हुए फूलबाग स्थित गांधी प्रतिमा पर संयुक्त बैठक आयोजित की।
बैठक में इन संगठनों के प्रतिनिधियों ने भारत तथा दुनिया भर में बढते आतंकवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि इसके मूल में आर्थिक विषमतायें ही प्रमुख हैं। अजय गुलाटी ने विषय की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि आज अंबेडकर की पुण्यतिथि है और उन्होंने बहुत पहले धर्म के अमानवीय स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा था कि अगर कभी हिन्दु राष्ट्र बना तो वह दलितों और महिलाओं के लिये विनाशकारी होगा। अशोक पाण्डेय ने कहा कि इस धार्मिक राजनीति के केन्द्र में न मनुष्य है न इश्वर बस सत्ता है। आज़ादी के पहले मुस्लिम लीग और आर एस एस दोनों अंग्रेज़ों की सहयोगी थीं और बाद में देशभक्त हो गयीं। डा प्रवीण नीखरा ने शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन पर ज़ोर दिया तो ज्योति कुमारी तथा किरन ने धर्म के महिला विरोधी स्वरूप पर ध्यान खींचते हुए कहा कि हर दंगा स्त्री के शरीर पर हमले से शुरु होता है।
डा पारितोष मालवीय, अशोक चौहान, जितेंद्र बिसारिया, पवन करण, राजवीर राठौर, ज़हीर कुरेशी, फ़िरोज़ ख़ान सहित अनेक लोगों ने बहस में हिस्सेदारी की। अंत में पास एक साझा प्रस्ताव में साम्प्रदायिकता विरोधी ताक़तों को मज़बूत करने तथा शीघ्र मंहगाई पर जनजागरण के लिये एक अभियान चलाने पर सहमति बनी।
7 टिप्पणियां:
nice
कभी बौद्धिक कट्टरपंध और आतंकवाद के विषय में भी लिखें जनाब।
ज़रूर
आप चेहरे से बुरक़ा और नज़र से चश्मा उतार के देखेंगे तो बहुत कुछ नज़र आयेगा।
अब पर्दानशीनों से बतियायें तो भी कैसे?
चमन वीरान करने को, चली गन्दी सियासत थी,
सुमन हलकान करने को, अमानत में खयानत थी,
युवा संवाद निश्चित ही एक जरूरी पहल में हमेशा हिस्सेदारी कर रहा है, आपकी रिपोर्टों के मार्फ़त यह जानना संभव हुआ है। युवा संवाद के सभी ऊर्जावान साथियों को सलाम। जारी रहें ऎसी जरूरी पहल!
बहुत अच्छा लगा। आपका लेखन बेहद धारधार है।
एल.पी.पंत
kya benami ji batane ka kasht karenge ki kattarpanth aur boddhik kattarpanth me kya fark hai ?
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