22 मार्च 2013

शहीद भगत सुखदेव राजगुरु और "शाइनिंग इण्डिया" का 'अर्थ आवर'


कौन आज़ाद हुआ? किसके माथे से सियाही छूटी ? मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का मादर-ए—हिन्द के चेहरे पे उदासी है वही .....

                                                   


रे भई, आपकी बात नहीं कर रहा । आप ख़ुद को आज़ाद मानने के लिए स्वतंत्र हैं । मैं तो उनकी बात कर रहा हूँ जो 1947 में आज़ाद होने के बाद आज भी बहुत से मामलों में आज़ाद नहीं हैं । जिनकी आज़ादी मुट्ठी भर रसूख वालों (जो इस मुल्क़ के बमुश्किल 15 प्रतिशत हैं) के पास गिरवी रखी  हुई है । साथ ही वो, जो पैसे-परस्तों, पूरी दुनिया को अपनी हवस में मिटा डालने वालों, बमबाजों और रह-रह कर कल्चर, आर्ट, ट्रेडीशन और सद्भावना-सौहार्द्र की दुहाई देने वालों की गुलामी करने में खींसें निपोरते विह्वल हुये जाते हैं । जो दुनिया भर में सबसे ज़्यादा कचरा पैदा करता है, कालिख उगलता है उसी के सफाई अभियान के अलमबरदार बनने में ख़ुद को प्रकृति-पर्यावरण और पूरी दुनिया के प्रति जागरूक दिखाते हैं । मैं ऐसे गुलामों की बात कर रहा हूँ । अरे भई करो न गुलामी, कोई झगड़ा नहीं है तुमसे...। सुना है जो किसी का नमक खाकर भी उसके खिलाफ जाता है, नमक हराम कहलाता है .... तो बौद्धिक श्रेष्ठिजन, मुझ अल्पबुद्धि को बताओ, उसे क्या कहा जाये जो अपनी आज़ादी के योद्धाओं, उसके बाप-दादाओं के साथ ही उसकी अपनी बेहतर ज़िंदगी के लिए मर मिटे शहीदों को याद करने की ज़रूरत न महसूसता हो ? अरे नहीं-नहीं , मैं उन निर्लज्जों, भीतरघातियों, परजीवियों के सटीक नामकरण के लिए बिलकुल भी चिंतित नहीं हूँ , मेरा सवाल तो आप सब से है कि ऐसे समय में जब ग्लोबलाइज़ेशन की दुहाई देती पूरी दुनिया के साथ ही साथ “इंडिया’’ (ध्यान दें ‘शाइनिंग इंडिया’, भारत नहीं ! ) भी 364 दिन तक फिजूल में बिजली फूँकने के बाद आज 23 मार्च को “ अर्थ आवर” मनाने जा रहा है, वो भी इन हालात में जब पूरे भारत में  घने जंगलों से लेकर  टाउन-हॉलों से घिरे  हज़ारों  गाँव या तो अंधेरे में डूबे होते हैं या 15 दिन बिजली और 15 दिन कटौती का मज़ाक झेलते हैं और लक़दक़ शहर, राजधानियों की सड़कें तक दिन में भी स्ट्रीट लाइट की ऐयाशी का मज़ा लेती हैं !  

तो ऐसे में हम-आप क्या करने वाले हैं ?....जबकि आज ही के दिन 1931 में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह और उनके साथियों शहीद सुखदेव, शहीद राजगुरु ने इस मुल्क़ की आज़ादी के लिए, इस मुल्क़ की आज़ाद जनता के लिए अपनी शहादत दी थी । उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस देश की जनता भविष्य में बेग़ैरती की हदें पार करते हुये उन्हें यूँ भुला देगी !

जिन युवाओं में वे आज़ाद भारत की बेहतरी का सपना बोना चाहते थे ,उन युवाओं के एक बड़े हिस्से को आज अपने शहीदों के नाम और चेहरे तक याद नहीं । आज अखबारी पहेली से लेकर टी.वी. शो तक में बस एक झलक या केवल नाक-कान-जबड़े से अभिनेता-अभिनेत्रियों की सूरत पहचानने वाला युवा भगत सिंह की बिना हैट वाले फोटो देखते ही मुँह बा देता है। उसके लिए भगत सिंह का वही चेहरा जाना-पहचाना है जो ग्लैमर के रंग में रंगा हुआ हो । यहाँ मेरा मतलब सिर्फ तस्वीर से नहीं है ।  दरअसल मीडिया भगत सिंह की जो रोमांटिक क्रांतिकारी वाली तस्वीर भुनाती है ,आज का युवा सिर्फ उसी से परिचित है । भगत सिंह से उसका मतलब फांसी के फंदे पर हँसते-हँसते झूल जाने वाला दिलेर है , जो इंकलाब ज़िन्दाबाद का नारा देता था । भगत सिंह से शहीद भगत सिंह तक की यात्रा से , भगत सिंह के इंकलाब के मायने से उनका दूर-दूर तक कुछ लेना देना नहीं है । इस अर्थ में वो सिर्फ उसे चेहरे को पहचानते है जो फिल्मी हीरोइज़्म से भरा हो । भगत सिंह के विचारों की सान से उसका कोई राबता नहीं । दूसरी तरफ जिन बौद्धिकों, चिंतकों से शहीदों को भविष्य की रोशनी की उम्मीद थी वे आज कैंडिल-लाइट डिनर में बिज़ी हैं या  बहुत हुआ तो कभी-कभी अपनी गुरु-गंभीर ( पढ़ें ‘टुच्ची’) लफ़्फ़ाज़ियों के साथ कैंडिल-मार्च कर आते हैं ।

 तो ऐसे समय में, ऐसे युवाओं और ऐसे बौद्धिकों (?) के बीच हमें तय करना है कि हम ‘अर्थ-आवर’ “सेलीब्रेट” करती “इंडिया” के साथ हैं या शहीद भगत सिंह, शहीद सुखदेव, शहीद राजगुरु के भारत की जनता के साथ हैं ? महज़ 1 घंटे तक बिजली की बरबादी का रोना रोने वाले हैं या अपने अमर शहीदों की शहादत और उनके मकसद को याद करते हुये, अपनी ऐतिहासिक विरासत को जानने-समझने और  उन  सपनों पर बात करने वाले हैं जो भारत की ही नहीं पूरी दुनिया की बेहतरी के लिए ज़रूरी हैं ?... आप स्वतंत्र हैं अपना पक्ष चुनने के लिए, जैसा कि संविधान घोषणा करता है और सुना भी जाता है । अब ये सवाल मेरा नहीं आपका है, कि आप किस ओर हैं ? पता नहीं आप “मुक्तिबोध” को जानते हैं कि नहीं.....फिर भी उन्हीं के शब्दों में पूछता हूँ – “.... पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ?”  


आशुतोष चंदन ( रंगकर्म से जुड़े हुए हूँ, और लेखन का कार्य भी करते हैं )

1 टिप्पणी:

ashutosh chandan ने कहा…

bhai apne hi lekh par galtee se shaandaar ka button dab gaya hai ....kya karun?