07 अक्तूबर 2009

भुला दिये जाने का डर


अगले बारह दिन मैं आप सब से, इस ब्लॉग की दुनिया .... सब से दूर रहूंगा। इस दुनिया में प्रवेश के बाद शायद पहली बार।

कितनी अजीब है यह दुनिया...बिना देखे...बिना बतियाये..कितना जानते हैं हम एक दूसरे को...जैसे रोज़ किसी चौराहे की गुमटी पे मिलते हों..जैसे रोज़ किसी गोष्ठी में उलझते हों..जैसे जाने क्या-क्या!


इस बार बस बिटिया की जिद पर --- उसका ही तो होता है अक्सर वह वक़्त जब हम यहाँ लगे होते हैं, लिख रहे होते हैं... पढ़ रहे होते हैं। तो इस बार उसी की बात मान ली और इन छुट्टियों में सफर बिना नेट के...


बहुत मिस करुंगा आप लोगों को...और आप लोग?

इस तेज़ दुनिया में १३ दिनों में भूल तो नही जाएंगे ?

5 टिप्‍पणियां:

बोधिसत्व ने कहा…

बिटिया को घुमा के आओ....फिर यात्र के हाल बताओ...हम याद रखेगे भाई

Udan Tashtari ने कहा…

घूम आईये...याद आयेंगे आप...और याद रखे जायेंगे आप,

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप क्या भूले जाने लायक हैं। लौट कर आइएगा। यात्रा अच्छी गुजरे।

विजय प्रताप ने कहा…

कहे का डर जी ... आप तो मस्त घूम के आओ. बिटिया को भी घुमाओ...आने के बाद यात्रा अनुभवों का इंतजार रहेगा.

प्रदीप कांत ने कहा…

Laut ke aiye... fir baat karenge. Bitiya ko ghumane pahale zaroori hai.