ब्लागबाजी में एक मज़ा है - हर आदमी यहाँ १२ फ़ुट का है। कम्पूटर पर बैठे-बैठे सबको लगता है किबस सबसे बड़ी क्रांति वही कर रहा है।
यहाँ दो तरह के लफ्फाज़ सबसे प्रमुख हैं - पहले तटस्थ और दूसरे गेरुए। दोनों का घोषित उद्देश्य है गंद फैलाना और जैसे ही कोई जवाब दे सीधे वामपंथी कहकर गालियाँ बरसाना। तुर्रा यह कि भईया बस यही हो रही है युगान्तरकारी बहस।
और सामूहिक ब्लागों का तो कहना क्या!!! हिन्दी पत्रिकाओं के संपादक शर्मा जायें इनकी तानाशाही देखकर्। पहले सर-सर कहके प्रार्थना करेंगे शामिल करने के लिये और जहां आपने कभी आईना दिखाया तो अपनी औकात पर आ जायेंगे।
ऐसी ही एक पोस्ट पर जब अपन ने लिखा तो क्या हुआ देखिये।
http://janokti.blogspot.com/2009/06/blog-post_9376.html परऔर हमारा अंतिम जवाब यहां
आपसे सर्टिफिकेट मांग कौन रहा है? इसी उम्र में वाम विश्वविद्यालय का कुलपति बन जाने पर बधाई! आपकी अपनी क्रेडिबिलिटी क्या है? बहस चल कहाँ रही है? ये मोहल्ला ये अनोक्ति सब कुत्ताघसीटी में लगे हैं और मुझे इसका हिस्सा नही बनना. इसके लिए क्या आप जैसों से परमिशन लेनी पड़ेगी?और सारी महान बातें बेनामी लोग क्यों करते हैं? जिनमे नाम तक ज़ाहिर करने की हिम्मत नही वे हमें बहस करना सिखायेंगे? किसी पार्टी की गुलामी नही करता कि कोई इस लायक नही लगता तो आप जैसों की क्या करूंगा?लेखक हूं लिखता हूँ जो सही लगता है. यहां भी और वहां भी जिनका बेनामी महोदय ने ज़िक्र किया है. जनता के बीच जाकर काम करता हूँ. नेट पर विप्लव करने वालों को याद होना चाहिए कि यहां आने का सादर आमंत्रण और अनुरोध उन्ही ने दिया था मैंने अर्जी नही लगायी थी. तो अब अगर इससे अलग होना है तो क्या अनुमति लूं? मेरे विचार और विचारधारा कोई छुपी हुई चीज़ नही हैं. फिर लाल गुलाबि आमंत्रण से पहले देखना था और अपने गेरुए से उसको मैच करा लेना था.हाँ बेनामी महोदय आपके विस्मय का हल मेरी लाइब्रेरी कर सकती है ...स्वागत है.वैसे बता दूं कि मार्क्स पर केन्द्रित एक किताब भी लिखी है हमने जो संवाद प्रकाशन से आ रही है.
4 टिप्पणियां:
पुस्तक के लिए बधाई!
ब्लाग ऐसा माध्यम है जहाँ आप हाइड पार्क की तरह कुछ भी कह सकते हैं। आप का टिप्पणी बक्सा चालू है तो कोई भी कुछ भी आ कर कह सकता है। लेकिन दीवार पर लिखी पंक्तियों से शायद अधिक मजबूत है, अन्तर्जाल पर लिखी पंक्तियाँ, जब जरूरत होगी काम आएंगी। बस इतना विनम्र निवेदन है कि जो कहा जाए उसे पूरी विनम्रता के साथ कहा जाए। जवाब में पत्थर से ले कर हाइड्रोजन बम तक जो मिले उसे भी विनम्रता पूर्वक झेल लिया जाए।
अशोक तुम्हारा अंतिम जवाब बिलकुल सही है.अब इस जवाब का भी कोई जवाब दे तो क्या करोगे? वैसे इस तरह के लोग तो हर कहीं मिलते रह्ते हैं.तुम्हारी किताब महत्वपूर्ण है.उस पर और कविताओं पर ध्यान केन्द्रित करो आखिर इस कुत्ताघसीटी मे रखा क्या है?
शरद भाई और आदरणीय दिनेश जी
अब तो कसम खा ली है कि पूरी तरह परखे बिना किसी के साथ नहीं जाऊंगा।
आप को यह जवाब लिखने की भी जरूरत नहीं थी। जवाब तो स्तरीय लोगों को दिया जाता है। शरद जी की बात तवज्जो देने लायक है। हम सब को आपकी किताब का इंतजार है।
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