09 नवंबर 2008

महामंदी की मार

पूंजीवादी व्यवस्था जिस तरह मुनाफा कमाने के लिए काम करती है उसकी कार्यपद्धति में ही आज के मंदी के बीज छिपे हुए हैं.इसलिए हमें विकल्प के तौर पर ऐसी व्यवस्था तलाशनी होगी जहाँ उत्पादन मुनाफे के लिए नही मानव जाति के समग्र विकास के लिए हो। यह बात युवा संवाद द्वारा आयोजित परिचर्चा "आर्थिक मंदी की मार और विकल्प का प्रश्न " में सार रूप में निकल कर सामने आयी.
आधार वक्तव्य देते हुए अशोक कुमार पाण्डेय ने समयांतर में प्रकाशित सचिन के लेख को उद्धरित करते हुए सवाल उठाया की अगर सरकारें मुसीबत में पूंजीपतियों को जनता के पैसों से बेल आउट पैकेज दे सकती हैं तो जनता को बचाने के लिए पूंजीपतियों के धन का उपयोग क्यों नही किया गया ? चर्चा में सी पी आई के जिला सचिव राजेश शर्मा , नीला हार्डिकर , डॉ सीमा शर्मा, डॉ अन्नपूर्ण भदोरिया ने बात को आगे बढ़ते हुए कहा कि यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले दो दशकों में कामगारों कि उत्पादकता और कीमतें बढ़ी लेकिन मजदूरी उस अनुपात में नही बढ़ी जिससे लोगों कि क्रय शक्ति घट गयी और अति उत्पादन हो गया जिसने मंदी को जन्म दिया।इस मंदी से बचने के लिए सरकार पूंजीपतियों कि मदद कर रही है। आम लोगों के लिए कुछ नही किया जा रहा है जिससे बेकारी बढ़ रही है इससे भविष्य और कठिन होगा ।
बाद में यह तय किया गया कि जनता के बीच इसे लेकर एक अभियान चलाया जाए।यह भी तय किया गया की युवा दखल का अगला अंक महा मंदी पर विशेषांक निकला जाए.

1 टिप्पणी:

हरिमोहन सिंह ने कहा…

दुनिया पैसेवालों की है आप ये बात भूल गये हो क्‍या