10 अप्रैल 2011

अन्ना का अनशन भ्रष्टाचार के खिलाफ है ही नहीं



  • अंशुमाली रस्तोगी



समझ नहीं आता कि क्यों अन्ना हजारे के अनशन को मिस्र की क्रांति से जोड़कर देखा जा रहा है? क्यों जंतर-मंतर को तहरीर चौक बनाने की कवायदें घोषित की जा रही हैं? क्यों इसे आजादी के बाद की दूसरी सबसे बड़ी लड़ाई बताया जा रहा है? क्या इस नाटक में मुख्य किरदार निभाने के लिए 71 साल के अन्ना हजारे ही बचे थे? फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ यह अनशन अभी ही क्यों? और वो भी इतने गाजे-बाजे के साथ? ऐसे कितने ही सवाल दिमाग में उठ रहे हैं। लेकिन इस वक्त सवाल करना कुछ की निगाह में अनशन को गाली देने से कम नहीं है। पर क्या करें लोकतंत्र का तकाजा ही यह कहता है कि किसी मुद्दे या आंदोलन पर सवाल कैसे भी, कहीं भी उठाए जा सकते हैं। असहमतियां भी जरूरी हैं। शंकाएं बहुत कुछ दबे-छिपे को बाहर लाने के लिए बनीं रहनी चाहिए।

अन्ना हजारे के अनशन पर जो भी सवाल उठा रहे हैं, उन्हें देशद्रोही की श्रेणी में रखने की कोशिशें जारी हैं। उनसे कहा जा रहा है कि वे अपना मुंह बंद रखें। क्योंकि अन्ना का 'अनशन आंदोलन' एक नेक काम के प्रति प्रतिबद्धता है। हमने माना कि भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होना नेक ही नहीं, बेहद साहस का काम है, मगर इस आंदोलन में जो सैलिब्रटियों की फौज है, घोषित भ्रष्ट चेहरे हैं, मीडियाई तमाशा है उन्हें कहां ले जाएंगे? यह सब तो साफ दिख रहा है।

अन्ना का अनशन एक तरह से जश्न सरीखा बन गया है। चैनलों पर आईं तस्वीरों में युवा वर्ग को नाचते-गाते, ताली व थालियां बजाते साफ देखा जा सकता है। वहीं अन्ना के स्टेज पर कुछ अतिक्रांतिकारी युवा गिटार बजाकर न जाने कौन-से क्रांतिकारी गीत गा रहे थे। क्या ये गाना-बजाना अन्ना या उनके ईमानदार समर्थकों को दिखाई नहीं दिया? आप अनशन कर रहे हैं या गाने-बजाने की मंडली को सुनने आए हैं? फिर दो-चार दिनों में ही ऐसा क्या हुआ कि सब के सब ईमानदार हो गए? इतने ईमानदारों (?) को एक साथ देखकर लग ही नहीं रहा कि हमारा मुल्क भ्रष्टाचार में 87वें नंबर पर है। साथ ही एक सवाल यहां यह भी उठाया जा सकता है कि इस आंदोलन के प्रेम में जितनी भी जगहों या शहरों से जो भी वर्ग जुड़ा, क्या वे सब पाकदामन या ईमानदार हैं? भ्रष्टाचार का एक नया पैसा अब तक न उन्होंने लिया है न दिया? बड़े-बड़े फिल्म स्टार, उद्योगपति, व्यपारी वर्ग, शिक्षक, वकील आदि सब ईमानदारी हैं, कोई भ्रष्ट नहीं! भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का मतलब तो यही हुआ न कि इससे सिर्फ वही लोग जुड़ें जो ईमानदार हैं। अगर यह सही है, तो हमारे मुल्क में भ्रष्टाचार है ही कहां? क्या केवल सिविल सोसाइट ही दूध की धुली है? अगर कोई खामी-खराबी है, तो वह सिर्फ सरकार और नेताओं में है?

देखिए, बहुत आसान है भ्रष्टाचार या काले धन के मुद्दे पर सरकार या नेताओं के विरुद्ध खड़े हो जाना। पर बेहद कठिन है अपने ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होना? खुद को भरे बाजार नंगा करना। चीखकर यह कहना कि हां, मैं भ्रष्ट हूं। अन्ना की भीड़ में जितने चेहरे शामिल हैं, उनकी ईमानदारी पर तरस ही खाया जा सकता है।

सवाल यह भी है कि लोकपाल विधेयक में केवल सिविल सोसाइटी के सदस्य ही क्यों? रिक्शावाला, ठेलेवाला, फड़ लगानेवाला, मजदूर, बेरोजगार आदि कहां हैं इसमें? इनके अधिकार कहां हैं? जिस सामाजिक भ्रष्टाचार का सामना ये लोग दिन-रात करते हैं, उसका समाधान कहां है इसमें? ऐसे कितने सिविल सोसाइटी के संभ्रांत हैं, जो इनके पक्ष में आए हैं? सिर्फ लोकपाल विधेयक का गाल बजाने से कुछ नहीं होने वाला मान्यवर। इसमें पीडितों व वंचितों को भी तो शामिल करिए।

दरअसल, अन्ना का अनशन भ्रष्टाचार के खिलाफ है ही नहीं। यह अपने-अपने सामाजिक चेहरों को चमकाने की उथली राजनीति है। गांधी के नाम के सहारे खुद 21वीं सदी का गांधी बनने की कवायदें हैं। भला मोमबत्ती जलाने से क्रांतियां हुई हैं कहीं!जिसे देखो वो मोमबत्ती को थामे चौराहे पर निकल पड़ता है। यह मोमबत्ती के मानिंद पिघली हुई क्रांति है।

ऐसे मीडियाई अनशन किसी मतलब के नहीं हैं। इस अनशन का महत्व तब बेहद खास होता, जब इसमें कोई भ्रष्ट शामिल नहीं होता।

फिलहाल, देखते हैं अन्ना के अनशन की अनुगूंज से कितने भ्रष्टों के कान बजते हैं और कहां-कहां पर भ्रष्टाचार खत्म होता है।

1 टिप्पणी:

Jawahar choudhary ने कहा…

बिलकुल ठीक कहा आपने . अन्ना अचानक बापू हो गए ! ऐसे लग रहा है कि भ्रष्ट केवल नेता ही हैं बाकी सारे पाकसाफ .
आज हालत ये हैं कि रिश्ते कि बात चलती है तो बताया जाता है कि लड़के कि तनखा तो सात हजार है पर ऊपर कि कमाई
बीस पचीस हजार है . और इसे लड़के की योग्यता मान रहा है समाज !!! प्रायः हर लड़की वाला अपने लिए भ्रष्ट दामाद चाहता है . खास कर धनवान लोग .
जहाँ लोग भौतिक सुखों के लिए किसी भी स्तर तक गिर रहे हैं वहां क्रांति !!!!! पैसे के लिए लोगों ने अपने बच्चो को रोबोट बना दिया है .
हर किसी को अमेरिका के सपने आते हैं , ये अपने देश में रहना नहीं चाहते हैं . इलेक्टानिक मिडिया पेड़ न्यूज और राडिया कांड इतनी जल्दी भूल गया !
लगता है जैसे कोई जेब कतरा पकड़ो पकड़ो चिल्लाता हुआ भीड़ में शामिल हो गया .
गांधीजी ने आन्दोलन के पहले जनता को तैयार किया था . विदेशी कपड़ों का त्याग , नौकरी का त्याग , सुखों का त्याग , खादी और सादगी का वरण,
सत्य का पालन आदि . यहाँ क्रांति की मोमबत्ती मजे और मजमे का प्रतीक लग रही है . पांच दिन की क्रांति के बाद लोग एसी में आई पी एल टूंग रहे हैं .
नीचे दी गई लिंक भी देखि जाना चाहिए ----

http://mohallalive.com/2011/04/10/samar-react-on-anna-hazare-fast-programme/