लोकतंत्र की रक्षा के लिये – विनायक सेन के समर्थन में
27 दिसम्बर को लगभग सभी अख़बारों में एक अजीब सा दृश्य था। पहले पन्ने पर बाईं ओर छत्तीसगढ़ के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता राजद्रोह के अपराध में आजीवन कारावास की सज़ा के बाद सींखचों के पीछे डा विनायक सेन का चित्र था और दूसरी तरफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे राजा, कलमाडी और नीरा राडिया के मुस्कराते हुए चेहरे थे। यह हमारे लोकतंत्र का शायद असली चेहरा है जिसमें भ्रष्टाचारी, बलात्कारी और गुण्डे क़ानून का माखौल उड़ाते हुए ख़ुलेआम घूम रहे हैं और दूसरी तरफ़ मेडिकल कालेज़ से निकलने के बाद पैसों की अंधी दौड़ के पीछे भागने की जगह अपना सारा जीवन ग़रीब आदिवासी बच्चों की सेवा को समर्पित कर देने वाले डा विनायक सेन जैसे समाजसेवियों को यह राज्यव्यवस्था अपना दुश्मन घोषित कर सींखचों के पीछे डाल रही है।
आख़िर डा सेन का कसूर क्या था? उनके ऊपर ज़ेल में बंद एक बयासी वर्षीय नक्सली विचारक को पत्र पहुंचाने का आरोप है! यह अलग बात है कि राम जेठमलानी से लेकर प्रशांत भूषण जैसे क़ानूनविदों की निगाह में न तो इन आरोपों के पक्ष में पेश किये गये सबूत उनको अपराधी साबित करते हैं और न ही यह ‘अपराध’ किसी ऐसी श्रेणी में आता है जिसके लिये उन्हें इतनी कड़ी सज़ा दी जाय। जाने-माने अर्थशास्त्री तथा नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन इसे यूं ही ‘क़ानून के साथ बेहूदा मजाक’ नहीं कहते। न केवल भारत बल्कि अमेरिका, इंगलैण्ड, पोलैण्ड, ज़र्मनी सहित तमाम देशों के बुद्धिजीवियों ने इस घटना की कठोर निंदा की है बल्कि इस अन्याय के ख़िलाफ़ सड़कों पर भी उतरे हैं।
दरअसल, इस सज़ा के पीछे कारण दूसरे हैं। जिस तरह से पिछले दिनों नई आर्थिक नीतियों के नाम पर देश भर में लूट का दौर चला है उसमें सबसे बड़ा खेल ज़मीनों के कब्ज़े का है। छत्तीसगढ़, उड़ीसा जैसी तमाम जगहों आदिवासियों और किसानों की ज़मीनें छीन कर उन्हें कौड़ियों के मोल देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करने का खेल चल रहा है। विनायक सेन इस खेल का विरोध करने वालों में सबसे आगे थे। उन्होंने देश-विदेश के तमाम मंचों से ग़रीबों और आदिवासियों के हक़ की बात उठाई थी और इसीलिये वह सरकार की आँख की किरकिरी बने हुए थे। यही वज़ह थी कि उन्हें इन झूठे आरोपों में फंसाकर जेल के हवाले किया गया है।
सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र का मतलब सिर्फ़ पाँच साल में एक बार वोट दे देना होता है? क्या जनता को अपने ख़िलाफ़ हो रही साजिशों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का भी हक़ नहीं है? क्या इस देश में नीरा राडिया, राजा, कलमाडी और येदिवरप्पा जैसे भ्रष्टाचार के आरोपी ही देशभक्त हैं और सवाल उठाने वाला हर शख़्स देशद्रोही?
विनायक सेन को सज़ा किसी एक आदमी को मिली सज़ा नहीं है बल्कि महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला की उस पूरी परंपरा को सज़ा है जो अन्याय के विरोध को हमारा अधिकार बताती है। इसके ख़िलाफ़ हमने आगामी दो जनवरी को दिन में एक बजे महाराज बाड़े पर धरने का निश्चय किया है।
आईये मिलकर इस अन्याय का विरोध करें…इससे पहले की आतंक के ये पंजे हमारे घरो के भीतर तक पहुंच जायें।
पीपुल्स इनिशियेटिव फार इक्विटी एन्ड जस्टिस, ग्वालियर
6 टिप्पणियां:
हम आप के साथ हैं।
हम साथ साथ हैं।
hum apke sath hai.
मित्रों, इस मुहिम में मेरा नैतिक समर्थन है.
हम साथ साथ हैं।
janmdin ki bahut bahut badhai
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