ग्वालियर, 12 सितम्बर, 2010। विचार ही सामाजिक परिवर्तनों के वाहक होते हैं। बिना वैचारिक क्रांति के कोई सामाजिक बदलाव संभव नहीं। आज पूंजीवाद सभी प्रगतिकामी विचारों को समाप्त करना चाहता है। इसके मुकाबले के लिये हमें बिना लाग लपेट के सीधे-सीधे सच्ची बात को कहना होगा। यह विचार ‘दख़ल विचार मंच’ की मासिक विचार गोष्ठी में ‘सामाजिक परिवर्तन तथा वैचारिक दख़ल’ विषय पर अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में जाने-माने साहित्यकार डा जी के सक्सेना ने व्यक्त किये। आल इण्डिया लायर्स एसोशियेशन के सचिव श्री गुरुदत्त शर्मा ने कहा कि आज दक्षिणपंथ जिस तरह से जड़ें जमा रहा है, यह ज़रूरी है कि समाज को आगे ले जाने वाले विचारों से परिचित कराया जाय्। स्त्री अधिकार संगठन की किरण ने कहा कि सामाजिक परिवर्तन के लिये समाज में महिलाओं की बराबरी को स्वीकार करना होगा। दख़ल के कुलदीप सिंह ने कहा कि विचारों की असहमति के दौर में पीढ़ियों का टकराव दिखाई देता है। जाने-माने पत्रकार राजेंद्र श्रीवास्तव ने आज़ादी के दौर में अलग—अलग विचारों के लोगों के बीच खुली बहस के माहौल को याद करते हुए वर्तमान में इसकी ज़रूरत पर बल दिया।
इस अवसर पर अजय गुलाटी ने बताया कि सभी उम्र के लोगों को जोड़ने और विचारों के प्रचार-प्रसार पर केन्द्रित करने के लिये युवा संवाद ने स्वयं को ‘दख़ल विचार मंच’ के नाम से पुनर्संयोजित किया है। गांधी प्रतिमा के पास खुले मैदान में हुई इस विचार गोष्ठी में अशोक चौहान, जितेन्द्र बिसारिया, अभिनव शर्मा, फिरोज़ ख़ान, ज्योति कुमारी, माता प्रसाद शुक्ल तथा रवि सिंह ने भी भागीदारी की तथा संचालन अशोक कुमार पाण्डेय ने किया।
1 टिप्पणी:
रपट लगाने का शुक्रिया!
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पढ़कर ज्ञान मिला!
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