युवा दख़ल ब्लाग के सभी पाठकों को हमें यह सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि ग्वालियर की इकाई ने ख़ुद को पुनर्गठित किया है। लम्बे बहस-मुबाहिसे के बाद हमने 'दख़ल विचार मंच' के नाम से ख़ुद को पुनर्गठित किया है। यह मंच स्थानीय स्तर पर प्रगतिशील समाजवादी विचारों की स्थापना तथा प्रचार-प्रसार का काम करेगा। 'ख़ुद को बेहतर बनाते हुए दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश' अब भी हमारा केन्द्रीय नारा है और उद्देश्य 'चुप्पी के माहौल में संवाद बनाने की कोशिश'।
इस मंच का संयोजक अजय गुलाटी को चुना गया है जबकि संयोजन समिति में उनके अलावा जितेन्द्र बिसारिया और किरण होंगे। कोष की जिम्मेदारी ज्योति कुमारी की होगी तथा पत्रिका के व्यवस्थापक होंगे राजवीर राठौर।
अब तक हम केवल युवाओं पर केन्द्रित थे लेकिन अब हमने सभी आयुवर्ग के लोगों को अपने साथ जोड़ने तथा विभिन्न विषयों पर गंभीर बहस-मुबाहिसे की योजना बनाई है। इसकी पहली कड़ी के रूप में हर माह के प्रथम रविवार को किसी सार्वजनिक स्थल पर अध्ययन चक्र चलाने का निर्णय लिया गया है।
युवा दख़ल |
के प्रकाशन का निर्णय
साथ ही इस मंच के मुखपत्र के रूप में युवा दख़ल बुलेटिन को नियमित रूप से त्रैमासिक निकालने का भी निर्णय लिया गया है। इसकी पृष्ठ संख्या 16 होगी और मूल्य मूल्य 5 रुपये। इसका आगामी अंक नागार्जुन, शमशेर, केदार नाथ अग्रवाल तथा फैज अहमद फैज के जन्मशताब्दी के अवसर पर जन कविता अंक होगा। जो साथी इसमे सहयोग करना चाहते हैं इनमें से किसी कवि पर आधारित अपना लघु आलेख भेज सकते हैं। साथ ही पत्रिका की वार्षिक सहयोग राशि रु 25/-भेजकर भी आप हमारा सहयोग कर सकते हैं।
7 टिप्पणियां:
आगे बढे हुए इस कदम के लिए ढेर सारी शुभकामनायें. कोई कहता था न कुछ हो, सिर्फ एक सपना हो तो भी हो सकती है शुरुवात.... और यहाँ तो सपना भी है और शुरुवात भी.....ये भी ठीक कि मजिल दूर है और रास्ता कठिन, लेकिन ये रास्ता तो खुद एक मंजिल है. हम सभी हमराही इस रस्ते पर दूर तलक चल सकें, असहमति के साहस और सहमती के विवेक के साथ ....आमिन!
खुद को बेहतर बनाते हुए दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश .. यह घोषवाक्य बहुत अच्छा लगा । इस गठन पर बधाई और निरंतर गतिविधियों के लिये शुभकामनाये ।
अच्छी शुरूआत
बेहतर निर्णय।
आनन्द आप क्या कहना चाह रहे हैं यह स्पष्ट भी नहीं हो पा रहा…हम से मेरा आशय ग्वालियर में हुई नई शुरुआत के हमसफ़रों से था।
वैसे खेद का कारण भी कुछ समझ नहीं आया।
Ashok tum, hum logo se alag ho chuke ho.. aur "Main" ban chuke ho.. Maje karo
आनंद अभी न तो तुमने जिन्दगी में इतना काम किया है..... और युवा संवाद के जिम्मेदार सदस्य की हैसियत ये भी जानता हूँ की अभी कर भी नहीं रहे हो की अशालीन भाषा में कह सको 'अशोक तुम ....' यहाँ तुमने अपनी जो भी राय दी है यह तुम्हारी वक्तिगत कुंठा हो सकती है कृपया इसे युवा संवाद की राय के तौर पर प्रचारित कर किसी भ्रम में मत रहो और किसी भी खुराफात से बाज आओ......
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