20 फ़रवरी 2010

इस किताब को ज़रूर पढ़िए



मैने अंग्रेज़ी साहित्य बहुत कम पढ़ा है। गोरखपुर हो, नडियाड या फिर ग्वालियर- अव्वल तो उपलब्धता ही नहीं रही और दूसरे जब और जितना मौका मिला अर्थशास्त्र, इतिहास और दर्शन को पहली वरीयता मिली। शायद इतिहास में रुचि का ही परिणाम रहा कि जब हिलेरी मेण्टल की यह किताब पलटकर देखी तो तुरंत ख़रीद ली ( वैसे ईमानदारी से बताऊं तो ४०० की क़ीमत देखने के बाद गीत से फोन पर इसके बारे में पूरी तहक़ीकात करने के बाद ही अपन इसे ख़रीदने की हिम्मत जुटा पाये।) किताब मोटी तो थी ही साथ में फ्रेंच शब्दों की भरमार देख के हिम्मत डोल गयी…फिर एक मित्र ने बताया कि नेट पर फ्रेंच से अंग्रेज़ी अनुवाद भी उपलब्ध हैं तो अपन भिड़ गये।




लेकिन जब एक बार पढ़ना शुरु किया तो बस डूबता चला गया। पता ही नहीं चला कि इतिहास पढ़ रहा हूं या उपन्यास। दोनों की सीमाओं का अतिक्रमण करता हुआ- रोचक … बेहद रोचक। इतना मज़ा शिवप्रसाद सिंह की नीला चांद पढ़ते हुए ही आया था। पूरा पढ़ के अभी उठा ही था तो मालूम पड़ा कि इसका दूसरा भाग भी आने ही वाला है…तो चैन पड़ने की जगह बैचैनी और बढ़ गई।




इस उपन्यास का नायक सोलहवीं सदी के ब्रिटिश कोर्ट का एक प्रख्यात कूटनीतिज्ञ थामस क्रामवेल है। इतिहास की किताबों में उसे लगभग खलनायक के रूप में ही जाना था पर हिलेरी उसे नायकत्व प्रदान करती हैं। आगे…


आप पढ़िये जनाब…ज़रूर पढ़िये!

8 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

देखते है ....

L.Goswami ने कहा…

वक्त और मौका मिलते ही ...

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

देखता हूँ इस पुस्तक को।

शरद कोकास ने कहा…

पढ़ने के बाद डाक से भेज देना । पढ़कर वापस कर देंगे ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मौका मिला तो ज़रूर पढ़ेंगे ...

neera ने कहा…

जरूर! यहाँ उपलब्ध भी है!

चन्दन ने कहा…

इस उपन्यास की भाषा बहुत बासी है, विक्टोरियन इंग्लिश जिसे कहते हैं। मैने दो प्रयास किये और बीच में छोड़ना पड़ा। नाटकीयता ऐसी भरी पड़ी है जैसे लेखिका उपन्यास नही कोई फिल्म का स्क्रीन प्ले लिख रही हो। नहीं जमा।

शाकिर खान ने कहा…

अंग्रेजी फंग्रेजी तो आबे न है मोपे केसे पढूं मैं
मिनिस्टर का लड़का फ़ैल हो। क्या वो मिनिस्टर उसे गोली मार देगा ? क्लिक कीजिये और पढ़िए पूरी कहानी और एक टिपण्णी छोड़ देना