अब कभी नही बैठेंगे हम ऐसे मेरे दोस्त
आज आख़िरी सिगरेट एश ट्रे में डालकर बुझा चुका हूं…
वादा किया था ख़ुद से कि उस दिन ही यह कविता पोस्ट करुंगा तो कर रहा हूं। कोई उपदेश नहीं। इसे छोड़ना मेरे लिये किसी ऐसे दोस्त को छोड़ना है जिससे कोई उम्मीद नहीं बची है पर प्यार ढेर सारा बचा है।
छोड़ ही दूंगा मैं तुम्हें एक दिन…
एक दिन छोड़ दुंगा तुम्हें
सीने पर आला अड़ायेरोज़ धमकाता है डाक्टर
पत्नी हर कश पर हो जाती है थोड़ा और उदास
बिटिया अक्सर रूठ कर फेर लेती है मुंह
कहे-अनकहे के बीच सब चाहते हैं तुमसे मुक्ति
सांसो के अदम्य मोह से आविष्ट
छोड़ ही दूंगा मैं तुम्हें एक दिन…
एक दिन उठूंगा नींद से
और सूरज की ओर से आश्वस्त हो
उस जानी-पहचानी जगह जब पहुंचेंगे हाथ
तो बस स्मृतियां होंगी तुम्हारी
रसोई के अलावा कहीं नहीं होगी आग
एक दिन जब बहुत दिन बाद
दोस्तों की किसी भरी-पूरी महफ़िल में
हज़ारों बार सुनी कविता पर दूंगा दाद
या यूं ही किसी शेर पर झूम उठूंगा
तो उंगलिया उदास हो ढूंढेगी तुम्हें
एक क्षण के दोस्ती पर जम जायेगा धुंआ
एक शाम जब किसी बिल्कुल नई किताब से गुज़रते हुए
ठहरुंगा किसी पंक्ति पर
और झूम-झूम कर दुहराऊंगा उसे
तब यूं ही खींच ली जायेगी दराज़
और वहां तुम्हारी स्मृतियां होंगी और गंध
तुम
सबके आंखों का कांटा
कब तक समझाउंगा सबको
कि तुम तब रही मेरे साथ जब और नहीं था कोई
सबके आने के बाद
जैसे छूट गईं ढेर सारी चीज़ें
तुम्हें छोड़ना होगा मुझे
चुकानी ही होगी - सामाजिक होने की क़ीमत!
16 टिप्पणियां:
बधाई!
लक्ष्य पा लिया आप ने।
बधाई हो!! ऐसे दोस्त को छोडना ही अच्छा है.
aisi chhezon se aakhir kab tak dosti chalegi jo aapki jaan to le hi rahi ho sath me aas-paas walon ki bhi muft me le rahi ho...
ek tarah se ye bhi ek gunah hai)agar aap public place me pee ke auron ki jindagi khatre me daal rahe hain to)
बहुत सही किया..बधाई. आज ५ बरस हो गये हमने साथ छोड़ा लेकिन अब लगता है अच्छा ही हुआ कि संगत छूटी.
कितनी बार छोड चुके हो ?
बहुत बढ़िया!
@ शरद भाई -- कोई पच्चीसेक बार छोड़ चुका हूं भाई। पर यह अंतिम निर्णय है।
are ham to fir bhi aise hi baithenge kai kai baar ...par log kuch bhi kahen vo apni tisari dost yaad aayegi jiski vajah se kai dost bane.
sahi kah rahe ho pavan...log har achchi chiiz ke dushman kyon hain? mujhe to ye cancer, dil kii biimari sab cigarette ke khilaf saajish lagte hain..
अच्छा होगा कि मैं इस मामले में मुंह ही न खोलूं।
छोड़ने की वजह तो आपने खूबसूरत बताई है। मगर छुट जाए तो ना !
तुम
सबके आंखों का कांटा
कब तक समझाउंगा सबको
कि तुम तब रही मेरे साथ जब और नहीं था कोई
सबके आने के बाद
जैसे छूट गईं ढेर सारी चीज़ें
तुम्हें छोड़ना होगा मुझे
चुकानी ही होगी - सामाजिक होने की क़ीम..
ये सिगरेट भी किसी पुरानी महबूबा की तरह होती है ... मुई कई बार कोशिश करने पर भी चुके से चली आती है यादों की तरह ... उड़ता हुवा धुंवा साँस के ज़रिए ... बहुत अच्छे शब्द बाँधे हैं आपने ...
उससे दोस्ती क्या कभी मुलाक़ात भी नहीं की... पर आज यह कविता पढ़ उससे दोस्ती करने की तलब उठी है... :-)
तुम्हारी पुरानी दोस्त से तो शायद मेरी जन्म जात दुश्मनी रही है.
मुझे ख़ुशी है कि मेरी दुश्मन का एक दोस्त कम हुआ तो साथ ही अफ़सोस भी है कि मेरे दोस्त का एक साथी भी छूट गया.
Bahut Sundar..
Bahut Sundar..
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