10 जनवरी 2010

सरकार के पास गरीबी हटाने के लिए पैसा नही है!


ग़रीब कौन है? सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अब तक तो वह ग़रीब था जो कैसे भी ज़िन्दा रहने भर का राशन जुगाड़ लेता था। आलोचनायें हुईं तो फिर से विचार किया गया और अब तेंदुलकर समिति कहती है कि ग्रामीण क्षेत्रों 444रुपये 68 पैसे और शहरी क्षेत्रों में 578 रुपये और ८० पैसे कमाने वाला ग़रीब नहीं है। इस आधार पर दैनिक उपभोग की राशि शहरों में लगभग 19 रुपये और गांवों में लगभग 15 रुपये ठहरती है जो विश्वबैंक द्वारा तय की गयी अंतर्राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा (20 रुपये) से कम है। यह हाल में आयी सक्सेना समिति की रिपोर्ट से बिल्कुल अलग है।


इस पूरी बहस को विस्तार से यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।


ग़रीबी रेखा के रूप में आय या आवश्यक कैलोरी उपभोग के किसी एक ख़ास आंकड़े को विभाजक बना देना रोज़ बदलती क़ीमतों और रोज़गार की अनिश्चितता की रोशनी में दरअसल एक भद्दा मज़ाक है। जब दाल 90 रुपये, चावल 20 रुपये, आटा 17 रुपये किलो बिक रहा है, डाक्टरों की फीस आसमान छू रही है, दवायें इतनी मंहगी हैं और बसों तथा रेलों से कार्यस्थल तक पहुंचने में ही 10-15 रुपये ख़र्च हो जाते हैं तो दिल्ली में बैठकर यह तय करना कि 15 या 20 रुपये रोज़ में एक आदमी अपना ख़र्च चला सकता है और उससे अधिक पाने वालों को सहायता देने की कोई ज़रूरत नहीं है उस सरकार की प्रतिबद्धता को स्पष्ट कर देता है जो पिछले साल पिछले बज़ट में पूंजीपतियों को सहायता और करों में छूट के रूप में 4,18,095 करोड़ रुपयों की सौगात दे चुकी है।

1 टिप्पणी:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सरकार भी गरीबी की श्रेणी में? गरीबी हटाओ अभियान का आरंभ यहीं से क्यों न किया जाए?