(यह ख़बर गोरखपुर से मित्र चक्रपाणि ने भेजी है। चक्रपाणि वहां छात्र आंदोलन में सक्रिय हैं।)
गोरखपुर। पूरे देश में नक्सलवाद-माओवाद के नाम पर सरकार तथा पंूजीवादी मीड़िया आमजन में दहशत का माहौल निर्मित करने का बखूबी प्रयास कर रहे हैं। हर जनान्दोलन को नक्सलवाद का नाम देकर उसे कुचुलने का प्रयास किया जा रहा है।
ऐसी ही एक खबर पिछले दिनों 22 अगस्त 09 को गोरखपुर के प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र (अमर उजाला) में प्रकाशित हुई। खबर का शीर्षक लगाया गया था ‘‘नक्सली आमद ने उड़ाये होश’’। समाचार के बीच में एक तस्वीर थी जिसमें एक व्यक्ति बंदूक लिए, अपने मँुह को बाॅधे हुए एकदम आतंकी जैसा प्रतीत हो रहा था।
खबर में यह बताया गया था कि पुलिस को सूचना मिली कि नक्सली महानगर में प्रवेश कर चुके हैं तथा स्टेशन स्थित किसी होटल में ठहरे हैं। पुलिस ने जब सैकड़ों की संख्या में वहाँ छापा डाला तो वहाँ कोई माओवादी या नक्सलवादी नही मिला बल्कि तीन निर्दोष युवक पकड़े गये जिन्हे जांॅच के बाद छोड़ दिया गया।
खबर के द्वारा यह जाना जा सकता है कि गोरखपुर में नक्सलियों की सुगबुगाहट मात्र एक वर्ष पूर्व से हुई है। जब से गोरखपुर विश्वविद्यालय के दो छात्र नक्सलियों के प्रदेश कार्य समिति में चुने गये हैं। खबर में इस बात का हवाला दिया गया है कि जून 2008 में नैनीताल में देश के सारे नक्सली एकत्रित हुये थे। जिसमें बरेली के छात्रनेताओं को अध्यक्ष व उपाध्याक्ष चुना गया था।
खबर को पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि कुछ माह पूर्व कुशीनगर में भी यही बातें प्रकाश में आयी थी। पत्रकार महोदय की माने तो देवरिया और कुशीनगर में नक्सलियों ने अपना नेटवर्क तैयार कर लिया है तथा गोरखपुर-बस्ती की ओर प्रयासरत है।
शाबाश! ‘अमर उजाला’ के मेहनती पत्रकार महोदय इतनी मेहनत से आपने खबर लिखी। शायद इतनी मेहनत अगर आपने अपने अखबार के लिए ‘विज्ञापन’ जुटाने में किया होता तो आपको कुछ फायदा हुआ होता। लेकिन आपने तो अपनी असलियत ही दिखा दिया। पत्रकार महोदय अगर आपको पूर्वांचल के लोगों से इतना ही प्रेम है तो आप ‘इंसेफलाइटिस’ जैसी जानलेवा बीमारी के बारे में जन प्रातिनिधियों और सरकार के खिलाफ खबरे क्यों नही लिखते? आप ‘मैत्रेय परियोजना’ के खिलाफ खड़े किसानांे की मांगो के समर्थन में खबर क्यो नही लिखते? वर्षो से ‘खाद कारखाना’ बंद है उसे खोलने के लिए सरकार पर खबर लिखकर दबाव क्यों नही बनाते? विश्वविद्यालय में सीट वृद्धि की समस्या के बारे में प्रमुखता से क्यों नही लिखते? पूर्वाचल के शिक्षा माफियों के खिलाफ खबरे क्यों नही लिखते? लेकिन शायद आपकी चिन्ता का विषय यह खबरें नही बनती। क्योंकि आप जैसे पत्रकारों ने तो देश में भय का माहौल कायम करने का ठेका ले रखा है।
उक्त समाचार को पढ़कर कुछ सवाल खडे होते हैं कि सम्मानित पत्रकार महोदय यह बतायें कि गोरखपुर के आसपास के जिलों में जिनकी आप चर्चा करते हैं आज तक कितनी नक्सली घटनायें हुई है। होटल में जब पुलिस छापा डालती है तो इसका समाचार सिर्फ केवल आपके ही सामाचार पत्र में छपता है क्या अन्य अखबार वाले सो गये थे। क्या आपने कभी विश्वविद्यालय प्रशासन से यह जानना चाहा कि उसके यहाँ दो छात्र नक्सली हैं उन्होने परिसर में कितनी वारदातों को अंजाम दिया है?
बतातें चलें कि एक वर्ष पूर्व भी जब ‘परिवर्तनकामी छात्र संगठन’ का ‘छठा सम्मेलन’ समाप्त हुआ था तब भी गोरखपुर के एक प्रमख हिन्दी दैनिक ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने भी इसी तरह की खबर प्रकाशित की थी। फिर हद तो तब हो गई थी जब ‘रामनगर नैनीताल’ से प्रकाशित ‘‘नागरिक अधिकारों को समर्पित’’ (हिन्दी पाक्षिक)के पाठको तथा वितरको के ऊपर प्रशासन द्वारा हमले शुरू कर दिये गये। ‘नागरिक’ पढने वालो को अखबार पढ़ने से रोका गया, अखबार को नक्सल समर्थित बताया गया। पाठको में भय का माहौल निर्मित करने का प्रयास प्रशासन के अधिकारियों ने किया। कई स्थानो पर तो नागरिक पाठको से वसूली तक की गई।
कुल मिलाकर सच तो यह है कि अगर आप इस जनविरोधी पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ बोलते है, लिखते है, पढ़ते हैं तो आप सरकार की नजर में ‘नक्सलवादी-माओवादी’ हैं। ऐसे में पंूजी के इस लोकतंत्र में व्यक्ति या संगठनों को बोलने तक की आजादी नहीं रह गयी है। इस देश की मीडिया भी सरकार के साथ इस खेल मे शामिल है।
4 टिप्पणियां:
इस आलेख से आप ने एक नए खतरे से आगाह किया है जो भविष्य में फासीवाद की नींव बन सकता है। इस विषय पर तथ्यों के साथ लगातार लिखा जाना चाहिए। मीडिया, ब्यूरोक्रेसी और सरकार की इन हरकतों के विरुद्ध जनशिक्षण आवश्यक है।
janvirodhi charitra se too aab sabhi parichit ho chuke hain. aab media ki jan virodhi rup lagatar samane aa raha hai,romans dikhane ki koshisgh mey vah ki8tana patit hota ja raha hai. pichhle varsh n epal ki rajshahi ke virodh main nikale gye julus ko rajastta ke samarthn main chhapa tha.isaki bimari kaise dur hogi?
सनसनी फ़ैलाने के लिए की जा रही इस तरह की रिपोर्टिंग कुछ क्षेत्रीय पत्रों की विशेषता हो गई है।
घटना और दुर्घटना ऎसे पत्रों के लिए उत्पाद मात्र है।
उसके कारणॊं की खोज और वास्तविकताओं से परिचित होने में उनके बाजारू संस्कार हमेशा आडे़ आते हैं और उनके ज्यादातार पत्रकारों के भी ।
शुक्रिया दोस्तों
साहित्य के सुविधाजनक खोल में सिमटे हिन्दी जगत में आपका यह सरोकार संघर्ष में लगे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढायेगा।
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