युवा संवाद एवं पी. आर. एस. द्वारा ‘‘बिआंड द ब्रैकेट्स’’ के तहत दो दिवसीय फिल्म प्रदर्शनी का आयोजन गांधी भवन भोपाल में किया गया। ‘‘इन्सानी बराबरी और जमहूरीयत की ओर’’ के नारे से आयोजित इस फिल्म शो के पहले दिन ( 5/12/2008 ) को ‘‘खामो’श पानी’’ का प्रदर्शन किया गया। 5 दिसंबर को फिल्म की शुरुवात से पहले मुम्बई में आतंकवादी हमलों के शहीदों को दो मिनट का मौन रख कर भावभीनी श्रद्वांजली दी गई।सबीना सूमर द्वारा निर्देशित और किरण खेर अभिनीत ये फिल्म मुख्य रुप से पंजाबी भाषा में होने के बावजूद भी दर्शकों पर गहरा प्रभाव डालने में कामयाब रही। इस फिल्म में सत्तर के द’शक में पाकिस्तान में कट्टरता एव धार्मिक जड़ता की दलदल में फंसी एक महिला और उसके पुत्र की कहानी को बहुत प्रभावशाली तरीके से उकेरा गया है। फिल्म के अंत में खुली चर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा के दौरान ये बात निकल कर आयी कि कट्टरता एव धार्मिक जड़ता किसी भी धर्म या दे’ा में हो उसका सबसे बड़ा खामियाजा महिलाऐं ही भुगतती है। फिल्म प्रदअर्शानी के दूसरे दिन( 6/12/2008 ) अहमदाबाद के दृष्टि ग्रुप के स्टलिन के. द्वारा निर्देशित ‘‘इंड़िया अनटच्ड’’ नामक डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म वर्तमान समय में भारत में व्याप्त छूआछूत और जातिप्रथा का ठोस विवरण देती है। इस फिल्म में भारत के सभी धर्मो में व्याप्त जाति व्यवस्था का तस्वीर है। ये फिल्म उन लोगों के लिए एक जवाब है जो ये कहते है कि जाति व्यवस्था और छूआछूत खत्म हो गइ है। भारत के लगभग 8 राज्यों में तीन सालों के दौरान बनायी गइ ये फिल्म दर्शको पर अमिट छाप छोड़ने में सफल रही। फिल्म के अतं में चर्चाकी गइ। चर्चा के दौरान ये बात निकल कर आयी कि जाति व्यवस्था खत्म नही हुइ है बल्कि वो अपने नये खोलों के साथ आज भी मजबूती के साथ हमारे समाज में मौजुद है। 6 दिसंबर का दिन बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए कुख्यात है लेकिन हम भूल जाते है कि इसी दिन बाबा साहेब आम्बेडकर की पुण्यतिथी भी होती है।जो कि भारत के दलित और वंचित तबकों के मुक्ती के प्रतिक है। ये हमें तय करना है कि हमें इस दिन को किस रुप में याद रखना चाहेगें?चर्चा के दौरान सभी सहमत थे कि साम्प्रदायिकता एव आतंकवाद एक दूसरे के पूरक है और हमें इन दोनों के खिलाफ ताकत से आवाज उठानी होगी तथा साम्प्रदायिकता एव आतंकवाद की अतिंम लड़ाइ वैचारिक स्तर पर लड़ी जायेगी और इसमें युवाओं की महती भूमिका होगी।इस फिल्म को लगभग 150 विभिन्न काWलेज के छात्रों,सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्वजीवियों ने देखा।
10 टिप्पणियां:
युवा सम्वाद,भोपाल के साथियो को शुभकामनाये
bahut achchha kiya apane.shukriya.
lekh padhaa,shubhkaamna..
पाण्डेय जी, धिक्कार भी नहीं सकता आपको, जिन लोगों ने देश की आजादी के लिये जान कुर्बान कर दीं, उनके लिये आपके मन में जरा भी प्रेम नहीं, मार्क्सवादी होने का दम भरते हैं, कभी ठीक से पूरा पढ भी लीजियेगा. बहरहाल, आप अच्छे नेता बन सकते हैं. रही बात धर्म-निरपेक्षता की तो अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, सोमालिया में अधिक जरूरत है, जाना पसंद करेंगे, अगर दम है तो उसी पैमाने पर तोलकर देखिये जिस पर हिन्दुओं को तोलते हैं, वही भाषा अपना कर देखिये जो हिन्दुओं के विरुद्ध प्रयोग करते हैं. अहं ब्रहास्मि अगर आपने पढी हो, तो कभी न कभी उसी की तरह आपको अहसास हो जायेगा.आप तक मेरा संदेश पंहुच रहा है, यही पर्याप्त है. एक बार फिर कहूंगा कि अगर आप इस व्यवस्था को इतना अच्छा समझते हैं तो दुनिया के बाकी देशों में लागू करने की मुहिम क्यों नहीं शुरू करते, मुझे अच्छा लगेगा यदि आप को दुनिया इसलिये याद रखे कि आप ने दुनिया के बाकी तमाम देशों में धर्म-निरपेक्षता लागू की, आप इतना स्वार्थी नहीं बनेंगे कि सिर्फ भारत तक ही इसे सीमित रखें.
वैसे अगर इस 'आमआदमी' ने हमारा ब्लाग पढा होता तो उसे मालूम होता कि छह तारीख को हमारी ही पहलकदमी पर ग्वालियर मे 200 लोगो ने मॉन जूलूस निकाल कर हमले के शिकार लोगो के साथ एक्जुटता प्रदर्शित की है।व्यक्तिगत स्तर पर चाहे तो मेरे ब्लोग http://asuvidha.blogspot.com पर मेरी कविता एक सैनिक की मॉत और काले कपोत पढ सकते है।
हम सऊदी अरब ही नही नेपाल से अमेरिका तक हर जगह सच्चे धर्मनिर्पेक्ष राज्य व्यवस्था के
पक्षधर है। जितनी ऑकात है करते है।आपसे सर्टिफ़िकेट नही मांगते । ना घूम घूम कर प्रदर्शन करते हैं ।
धर्म के नाम पर ज़हर ऑर नफ़रत बांटने वालों वालो से ये क्या कहना कि क़िताबे हमारा हथियार है और इन्सानियत हमारा प्रस्थान बिन्दु। तो पढते हम सब है अहम ब्रह्मास्मि भी और ब्रेख्त भी।
मै क्या बन सकता हू बताने के लिये शुक्रिया । तोगडिया और मोदी की गोद मे बैठकर नेताओ को गाली देने वालो का खेल बखूबी समझता हूँ । और इसीलिये आप जैसे लोगों से तीखी नफ़रत करता हूँ
…आप जितना चाहें धिक्कार सकते हैं
जातिवाद,सांप्रदायिकता या फिर अपने देश की अस्मिता से जुड़ा कोई सवाल हो, सब के मूल में राजनीति है।सर्वसाधारण को सिर्फ़ विचार नहीं,व्यवहार चाहिये। वैचारिक लड़ाई कौन लड़ता है, हम और आप। न कि जनता।मुझे न तो कोई पार्टी भाती है न उसके विचार ही। सब कुर्सी का खेल खेलते हैं। थोड़े -बहुत जो होता है वह गैर राजनीतिक लोग करते हैं।
कुछ भी गैर राजनीतिक नही होता।
सिर्फ़ सत्ता की ही नही विरोध और विकल्प की भी राजनीति होती है। जब आप किसी का विरोध करते है तो अपनेआप किसी विकल्प का समर्थन करते है वरना विरोध नही यह बस अर्थहीन प्रतिक्रिया है। ज़रूरी नही कि विकल्प का अर्थ चुनाव मे इस या उस दल का समर्थन ही हो…वह इस व्यवस्था से बाहर का एक बेहतर लेकिन मुश्किल विकल्प भी हो सकता है।
common main ka sandesh pedha.....duniya ki baat kerke unhone y to maana ki Bahrat mai communalism ki problem hai..'common man' baaki duniya ko laker jeyda preshaan hai..unhe apne desh mai koi problem hi nahi dekhti. jeha aaj bhi Dalito, Mahilaoo per atyachaar hoo rahe ahi... Brahamanvaadi vuvesthaa nai aaj bhi Dalito-Mahilaaoo ko doyam derjai ka nagrik benayya huaa hai..phir bhi inhe apne hindu hoone per thodi bhi sermindgi nahi hai..thodi bhi insaniyaaat hoo to inko bhi insani barabri k liye kuch to kerna hi cheiye...ek baat aaur RSS aaur SIMI jaise sanghtanoo nai is desh k hindu aaur mulmanoo ka tekhaa lai rekha hai kya? is desh real common main jis din ek hoo jaayega in subka petta saaf hoo jaayega.....
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। निश्चित रूप से आपकी सोच बहुत प्रखर है। कुछ टिप्पणियां मैंने देखी हैं, आप उनको नजरन्दाज करते हुए अपनी बात कहते रहे हैं। उन लोगों की टिप्पणियां इस बात का सबूत हैं कि आप अच्छा लिखते हैं, तभी तो किसी को कुछ चुभ रहा है। मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है। हमारे ब्लॉग के लिए भी कुछ लिखें। उम्मीद है संपर्क बना रहेगा।
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