06 मई 2010

मैं और क्या करुं निरुपमा?

निरुपमा केवल उस लड़की का नाम नहीं रहा अब जो एक पत्रकार थी, जिसके लिये उसका परिवार बेहद प्रिय था, जो प्रेम करती थी…जिसे प्रेम करने की सज़ा मिली…

हमें माफ़ करना निरुपमा! 
अब यह नाम उन तमाम लड़कियों का है जो इस ग़लतफ़हमी का शिक़ार हो जाती हैं कि प्रेम दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ है और इसकी भी कि दुनिया में सब तुम्हारे दुश्मन हो जायें पर मां-बाप का दामन हमेशा तुम्हें समेटने को तैयार होता है। पर वह नहीं जानती थी कि जिस मनु स्मृति को अंबेडकर ने वर्षों पहले जला दिया था वह इस देश के ब्राह्मणवादी सवर्ण समाज में इतने गहरे धंसी है कि साठ साल पुराना संविधान उसके सामने कहीं नहीं ठहरता। हर घर में एक खाप पंचायत है और हर घर में एक यातनागृह जहां धर्मच्युत औरतों को सूली पर चढ़ा दिया जाता है और धर्मपालक औरतों को ज़िंदगी भर तिल-तिल कर मरने का इनाम दिया जा सकता है। वे इसे नारी की पूजा कहते हैं!

और इस आधुनिक समाज में इसके परोक्ष समर्थकों की कोई कमी नहीं जो कहेंगे कि हर मां-बाप का फ़र्ज़ बच्चे को सही सलाह देना होता है। 'क्षमा बड़न को चाहिये' बस बचपन के किस्सों की चीज़ है…वे कभी इस सवाल का जवाब नहीं देंगे कि उन सुख-सुविधाओं का क्या अर्थ है जब ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल मुकाम पर वे साथ ही न खड़े हो सकें।

तुझसे नहीं अपने आप से वादा है यह
जब मैने अन्तर्जातीय शादी की थी तब मुझे भी अकेला छोड़ दिया गया था…पर हम खड़े हुए अपने दम पर…बहुत सारे भ्रम टूटे पर मिलकर फ़ैसला लिया था कि अभी झुकेंगे नहीं और अपनी औलाद को कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे…आज मे्री 9 साल की बिटिया से मेरा वादा है…तेरी ख़ुशी में न आ सका तो कोई बात नहीं पर तेरे हर दुख में तेरे साथ रहुंगा…

मैं और क्या करुं निरुपमा…?

15 टिप्‍पणियां:

Pratibha Katiyar ने कहा…

itna hi ham kar len ki apni betiyon ko apne hone ka bharosa de saken to kafi hai...

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

हमारी बेटी को हम पर पूरा भरोसा है जो कदापि मिथ्या नहीं।

rashmi ravija ने कहा…

Great just great....बस एक यही सोच...हर पिता की होनी चाहिए कि कैसी भी स्थिति हो बेटी का साथ ना छोड़े..और उसका आत्मविश्वास ना खोने दे...उसके आत्मसम्मान ,उसकी भावनाओं का भी उतना ही ख़याल रखे....
बिटिया बहुत प्यारी है..क्या नाम है?.....नाम भी लिख दिया होता...

mukti ने कहा…

प्रेम है जीवन का सबसे खूबसूरत सच, जिसका खूबसूरत सा प्रमाण आपकी बिटिया है. प्रेम है या नहीं यही नहीं समझ पातीं लड़कियाँ, तभी तो "इमोशनल फ़ूल" होती हैं. यहीं छली जाती हैं. माँ-बाप के लिये प्रेम से बढ़कर प्रतिष्ठा हो जाती है और लड़कियाँ प्रेम करती रहती हैं... तथाकथित प्रेमी अपना स्वार्थ सिद्ध करता है और लड़कियाँ प्रेम समझती रहती हैं.
@आज मे्री 9 साल की बिटिया से मेरा वादा है…तेरी ख़ुशी में न आ सका तो कोई बात नहीं पर तेरे हर दुख में तेरे साथ रहुंगा…
मैं और क्या करुं निरुपमा…?
यही सबसे बड़ी बात है, जो हम और आप कर सकते हैं कि अपने बच्चों का साथ दें, हर दुःख में हर सुख में...

डॉ .अनुराग ने कहा…

इस मुद्दे पर भावावेश में बहुत कुछ ....कल की चिटठा चर्चा पर लिख चूका हूँ अशोक जी.बस इतना ही कहूँगा ...वर्ग विभाजित इस समाज को सिर्फ शिक्षा ही नहीं कुछ मानवीय मूल्य ही दूर कर सकते है .जो केवल घर में मिल सकते है ...खाली नैतिक शिक्षा की किताबो में नहीं .....चूंकि समाज हमी लोगो से बनता है .....

varsha ने कहा…

ख़ुशी में न आ सका तो कोई बात नहीं पर तेरे हर दुख में तेरे साथ रहुंगा…
vaah...ab dekhiyega bitiya vera apni har manzil aapko vishwaas mein lekar tay karegi kyonki yahi aapne use diya hai.

shikha varshney ने कहा…

अशोक जी ! इस बारे में इतने अजीब अजीब से विचार पढ़ कर आ रही हूँ कि आपकी पोस्ट पढ़कर एक राहत सी महसूस हो रही है....और कुछ नहीं बस इतना कहना चाहूंगी ..बहुत भाग्यशाली है आपकी बेटी जिसे आप जैसा पिता मिला ..काश भारत कि हर लड़की इतनी ही भाग्यशाली होती....hats off to you

Prince ने कहा…

कितना सच कहा है "हर घर में एक खाप पंचायत है और हर घर में एक यातनागृह जहां धर्मच्युत औरतों को सूली पर चढ़ा दिया जाता है और धर्मपालक औरतों को ज़िंदगी भर तिल-तिल कर मरने का इनाम दिया जा सकता है। वे इसे नारी की पूजा कहते हैं!"
पर मुझे लगता है कि चीज़ें बदल रही हैं भले ही इस परिवर्तन की रफ़्तार थोड़ी सुस्त है. रूढ़ियाँ और प्रथाएं जिस तरह विकसित होने में समय लेती हैं उसी तरह मिटने में भी समय लेती हैं. और उन्हें मिटाने का प्रयास करने वालों को पहली पराजय तो अपनों से ही मिलती है. किसी ने कहा है "हर शिक़स्त के बाद संघर्ष करने की ज़िद और मजबूत होती जाती है और फ़तह क़रीब आने लगती है."

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपने चंद शब्दों में सारी जिंदगी कि दास्तान कह दी है....बस यही संकल्प आज लेना होगा....आपके बुलंद इरादों पर नतमस्तक हूँ....

कम से कम एक बेटी तो है जो कह सकती है कि मेरे माता पिता मेरे हर दुःख - सुख में साथ खड़े हैं....

बहुत बहुत बधाई...और शुभकामनायें

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

वीरेन दा की कविता में आता है - मैंने प्रेम किया इसलिए भोगने पड़े मुझे इतने प्रतिशोध...
९० में मेरी दोस्ती एक लड़की से हुई. ९९ में हमारी शादी हो गई. वह ब्राह्मण है...और शादी जाहिर है कि अंतर्जातीय है.... ११ साल हो गए कितनी तरह से कितने प्रतिशोध भोगे...क्या कहें....लोग ज़िन्दगी भर का विद्वेष पाले बैठे हैं.... साल भर पहले तक मुझ पर हमले होते रहे ...धमकी भरे फोन अब भी आते हैं....८ साल का बेटा है...पर जीवन चलता रहा है और चलेगा....खुशनसीब हैं हम कि पूरे प्यार के साथ दुनिया में मौजूद हैं. पूरी कोशिश है बेटा सब कुछ सीखे -जाने पर जाति जैसा कोई शब्द उसके पास भी न फटके....हालाँकि मेरा भारत महान में रहते हुए जल्द ही वो वह सब कुछ जान लेगा. उस दिन का सोच कर दिल काँपता है...

राजकुमार सोनी ने कहा…

दुनिया में इतना खूबसूरत वादा तो मैंने कभी नहीं देखा न सुना। अदभूत। आप हमेशा सफल रहे। शुभकामनाएं।

स्वप्नदर्शी ने कहा…

उसे इस लायक भी बनाए, कि वों कहीं और सहारा न ढूंढें, न पिता में न पति में. तब भी आगे बढ़ती रहे, सुखी, स्वस्थ और समृद्ध रहे जब आप न रहे. एक सम्पूर्ण मनुष्य जीवन जिए.

मेरे परिवार की पिछली पीढी में दो विवाह गैर ब्राहमण परिवारों में हुये और फलस्वरूप दो लोगो को जाति निकाल बाहर किया गया. हमारी पीढी में कम से कम ५०% विवाह जाति से बाहर ही हुये है, और थोड़ी ढुल-मूल के बाद स्वीकृत है. ४० साल पहले मेरे एक दूर के चाचा को बहुत विरोध सहना पढ़ा था एक इसाई लड़की से विवाह करने के बाद, एक दिन उन्होंने मुझे कहा, "अरे तुम्हारे लिए तो जीवन आसान रहा, कोई ड्रामा-नही? "

जिस गति से समाज बदल रहा है, और जितनी परतों में बंटा हुया है, वहाँ जाति और अंतरजातीय विवाह, बहुत दिनों तक रहने वाले नहीं है. पर स्त्री के स्वास्थ्य, और सामाजिक अनुकूलन को समझने और उससे उलझने की ज़रुरत लम्बे समय तक बनी रहेगी.

मुझे भी बहुत समझ आया नहीं कि किस तरह रिएक्ट किया जाय. कुछ रिसोर्सेस थे जो अपनी यात्रा में मुझे कुछ समझने, सोचने की ताकत दिए. उन्ही में से कुछ का ज़िक्र इस पोस्ट में है. किसी के काम आये, कोई माता-पिता अपने बच्चों को कभी पढवाना चाहे तो यहां है.

http://swapandarshi.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

बोधिसत्व ने कहा…

क्या कहा जा सकता है....

neera ने कहा…

आप जैसे पिताओं को क्लोन करें .... शायद अगले साठ सालों में कुछ बदल जाए ...

ghughutibasuti ने कहा…

इससे अधिक और क्या वचन दिया जा सकता है संतान को?
हमारा भी अन्तर्जातीय विवाह है। बेटियों का साथ सदा दिया है और देंगे। आपका लेख पढ़ एक बच्ची के लिए तो राहत की साँस ली।
घुघूती बासूती