05 फ़रवरी 2010

इतना कीचड़ मत उछालो अविनाश

हमें गर्व है शमसुल इस्लाम और लालबहादुर वर्मा जैसे दोस्त शिक्षकों पर

अविनाश को मै व्यक्तिगत तौर नहीं जानता…मोहल्ला पर उनकी कारस्तानियों और एनानिमस नामों से आने वाली टीपों के चलते काफ़ी दिनों से वहां जाना छोड़ रखा था। पुस्तक मेले में संवाद के स्टाल पर अपने मित्र विश्वरंजन ( छत्तीसगढ़ वाले साहब नहीं) और मनोज के साथ गप्पें कर रहा था कि ये अचानक नमूदार हुए। सीने पर जसम का पोस्टर चिपकाये-- सैमसंग के विरोध में। संवाद वाले आलोक जी ने परिचय कराया तो अनिच्छा के बावज़ूद सहज व्यवहार से मैंने हाथ बढ़ाये। उन्होंने जब सिग्नेचर कैंपेन के लिये काग़ज बढ़ाया तो मुझे सैमसंग मुद्दा ही लगा पर था अनिल चमड़िया जी के वर्धा से निष्कासन के ख़िलाफ़। मैने सहर्ष उस पर हस्ताक्षर किये औरअपने मित्रों से भी हस्ताक्षर करवाये। मैने सैमसंग मुद्दे का भी ज़िक्र किया और कहा कि इस पर भी कुछ होना चाहिये। साथ में दिलीप मण्डल जी भी थे और उनसे भी मुलाकात हुई और वर्धा के यशस्वी छात्र भाई देवाशीष प्रसून तो ख़ैर संवाद के स्टाल पर थे ही।

लौट कर आने के बाद मैने हर उस ब्लाग पर जहां अनिल जी के निष्काषन की ख़बर थी, वर्धा प्रशासन की भर्त्सना की। मोहल्ला पर नहीं जाता सो नहीं गया…

कल रंगनाथ सिंह को फोन तो किया था अपनी किताब पर राय लेने के लिये पर उन्होंने जब यह बताया कि अविनाश ने एक बार फिर अपनी घटिया हरकत दुहराते हुए लाल बहादुर वर्मा पर कीचड़ उछाला है तो ख़ून खौल गया।

मैने उस संबध में लाल बहादुर वर्मा से बात की। उन्होंने बताया कि अविनाश उनसे मिले ही नहीं थे। कोई और आया था जिससे उन्होंने कहा कि मैं आधे ड्राफ़्ट से सहमत हूं परंतु विभूति नारायण राय के ख़िलाफ़ जो कुछ लिखा है उसका मेरे पास कोई सबूत नहीं। या तो आप उसके समर्थन में सबूत लायें या फिर उसे हटायें। उस व्यक्ति ने ढिठाई से कहा कि इससे आपकी पक्षधरता साबित होगी। वर्मा जी ने जवाब दिया कि तुम बुश हो क्या कि जो तुम्हारे साथ नहीं वह आतंकवादी है!

अविनाश ने कोई डिटेल न देते हुए सरासर झूठ अपने ब्लाग पर लिखा है। अगर आरोप थे तो सबूत होने चाहिये थे। मै अनिल जी का बेहद सम्मान करता हूं और उनके लिखे का फ़ैन हूं तो मुझे उस पत्र पर हस्ताक्षर करने में दिक्कत नहीं हुई। विभूति जी का भी अब तक लंबा लेखकीय और सार्वजनिक रिकार्ड रहा है तो उन पर व्यक्तिगत आक्षेप को बिना सबूत न मानने के पीछे ऐसा कोई सम्मान क्यों नहीं हो सकता? क्या आरोप लगाने वालों का फ़र्ज़ नहीं बनता कि मांगे जाने पर अपने आरोपों के समर्थन में सबूत पेश किये जायें? और ऐसा मांगने वाले की पक्षधरता पर सवाल उठाने का नैतिक अधिकार कैसे है आपके पास?

आख़िर वर्मा जी या कोई ऐसे व्यक्ति ( अविनाश) की विश्वसनीयता पर शक़ क्यों नहीं करे जिसका कुछेक सालों का कैरियर धोखेबाजी, बलात्कार, छेड़छाड़ और झूठ जैसे आरोपों से घिरा रहा हो? और ऐसे आदमी को उस लालबहादुर पर सवाल उठाने का क्या हक़ है जिनका आधी सदी से अधिक का प्रोफ़ेशनल और लेखकीय जीवन किसी भी दाग़ धब्बे से मुक्त रहा हो? जिसके ऊपर कोई आरोप तो छोड़िये किसी पुरस्कार और सम्मान का भी धब्बा नहीं है। कुछ समय पहले खाने और पीने के जुगाड़ में इसी वर्धा के बुलावे पर इलाहाबाद पहुंचे अविनाश किस मुंह से दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं? क्या ब्लाग हाथ में होने का मतलब किसी पर किसी भी भाषा में कीचड़ उछालने का अनन्य अधिकार है?

अनिल जी का निष्काषन हम सब के लिये दुखद और विक्षुब्ध करने वाला है। पर अनिल जी अगर ऐसे ही वक़ील किये आपने तो अफ़सोस कि तमाम लोग जो समर्थन करना चाहते हैं इनकी शोशेबाज़ी और विवादप्रियता के चलते निराश ही होंगे। ऐसे लोग जिस काज़ के समर्थन में होते हैं अंततः उसे ही नुक्सान पहुंचाते हैं।
*** रंगनाथ जी ने सही याद दिलाया कि मोहल्ला लाइव पर हिन्दी के अत्यंत सम्मानित एवं प्रतिबद्ध लेखक संजीव पर भी ऐसे ही कीचड़ उछाला गया है। मैं उसका भी इतना ही तीखा विरोध दर्ज़ कराता हूं।

14 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बधाई हो, आप भी जान गये अविनाश को… :)

अविज्ञात परमहंस ने कहा…

इसका मतलब कीचड तो उछालो अविनाश पर मर्यादा से। अब होली आनेवाली ही है। अगर हमे परेशानी है तो हम अपने आप को घरमे बंद रखे। मै यह मानता हूं कि कितना भी घिनौना क्यो न हो विचार तो मनमे आता ही है। और मन की भडास निकालने के लिये ब्लॉग जैसा अन्य कोई और साधन नही है। अगर मै मेरी ही मा, बहन xxxरहा हूं तो आपको कया आपत्ती है?

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

मैं अविनाश से परिचित नहीं पर आप से सहमत हूँ।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

्प्रोफ़ेसर साहब
वैसे तो मां-बहन करने पर ही आपत्ति है पर जब वह अपनी के बज़ाय दूसरों की हो तो और भी घनघोर। ये गालियां वैसे ही घोर मर्दवादी हैं और स्त्रीविरोधी। रिटायरमेण्ट के बाद इससे कहीं बेहतर काम किये जा सकते हैं।
और ऐसे नहीं इतना का सवाल था…तो ऐसे वैसे का सवाल नहीं है। होली मे दुश्मन को दोस्त बनाया जाता है, बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। कीचड़ नहीं उछाला जाता और आजकल तो सूखी होली का ज़माना है। :-)

Anil Pusadkar ने कहा…

sahmat hun aapse

36solutions ने कहा…

अशोक जी आपने बहुत सटीक लिखा है, ब्लाग है इसका मतलब क्या है, किसी को भी बिना तथ्यो के गरियाना उचित नही है. चाहे वह अविनाश का मोहल्ला हो या संजीव की गली.

Rangnath Singh ने कहा…

लाल बहादुर वर्मा ही नहीं संजीव के लिए भी मोहल्लालाइव पर जिस तरह की गैर-जिम्मेदार टिप्पणी की गईं उससे मैं बहुत आहत हुआ हँू। ऐसे मामले में इन लोगों को घसीटना सर्वथा अनुचित है।

mukti ने कहा…

अविनाश कौन है, मैं नहीं जानती. पर मैंने आपका नाम बहुत सुना है, अनिल चामड़िया जी के लेख पढ़े हैं-संधान में, विभूति नारायण जी को एक-दो बार इलाहाबाद में सेमिनार में सुना है और उनके बारे में काफ़ी कुछ जानती हूँ और लाल बहादुर वर्मा जी से तो मैं कई बार मिली हूँ, हालांकि बहुत दिनों पहले की बात है. मैं उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ. प्रसंग क्या है, नहीं पता, पर ये जितने भी लोग हैं, उनके बारे में किसी को भी कुछ ग़लत कहने से पहले सौ बार सोचना चाहिये.
आप सही हैं. ऐसी किसी भी बात का खुलकर विरोध करना चाहिये.

देवाशीष प्रसून ने कहा…

अनिल चमड़िया के हिंदी विश्वविद्यालय से निकाले जाने के विरोध-अभियान में लालबहादुर वर्मा जी से हस्ताक्षर करवाने, मैं गया था। वह भी नाराज थे विभूति नारायण की मनमानी और तानाशाही से, लेकिन पत्र के मज़मून में राय की एक दलित विरोधी कारिस्तानी की भी भर्त्सना की गई थी, जिससे वो वाकिफ़ नहीं थे, इसलिए उन्होंने दस्तख़त नहीं किए।

बेनामी ने कहा…

pawan meraj मुझे
विवरण दिखाएँ ३:४२ AM (19 घंटों पहले)


वक्तिगत तौर मै अपने आपको अनिल जी के साथ पाता हूँ. दरअसल यह लड़ाई सिर्फ अनिल जी कि नहीं है ये लड़ाई उस पूरी shikccha व्यवस्था के खिलाफ है जो अनुभव जन्य ज्ञान वो कोई वरीयता नहीं देती लेकिन कितनी विडम्बना है कि उनके साथ एक ऐसा वक्ति खड़ा है जिसके साथ उठने बैठने में कोई भी संवेदन शील असुविधा ही महसूस करेगा. इसमें दोष अनिल जी का भी नहीं है इस लड़ाई में उन्हें बहुत से दोस्तों कि जरुरत है और हर साथ आने वाले के इतिहास से परिचित नहीं हुआ जा सकता. अविनास दास से न तो मेरी कोई जाती लड़ाई है न कोई सम्बन्ध (ये भी सच है कि मै चाहता हूँ कोई भी सम्बन्ध भविष्य में न हो). कारण स्पष्ट है कि कोई संवेदनशील व्यक्ति ऐसे आदमी के साथ खुद को कैसे जुड़ा देख सकता है जिसे माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय और दैनिक जागरण से इसलिए निकला गया क्योंकि एक छात्रा के साथ की गई उसकी बदसलूकी साबित हो गई थी. और अविनाश अगर चाहेगा तो सबूत भी दिया जा सकता है.
अविनाश जिन लाल बहादुर जी के बारे में टिप्पड़ी कर रहे हैं उसके बारे में कुछ भी बोलने की उनकी औकात नहीं है. पर यह उनका इतिहास रहा है कीचड़ उछालना.... जी हाँ इक ये माहिरी भी है शक्शियत सजाने की. अपने ही ब्लॉग पर खुद अलग अलग नामों से टिप्पड़ियां कर हिट होने का शगल उनकी चौथी दुनिया की नौकरी भी खा चुका है पर उनकी दुम सीधी होने का नाम ही नहीं लेती. पर अविनाश अब बाज आ ही जाओ तो बेहतर होगा. कहीं ऐसा न हो कि कलम चलाने वाले लोगों को तंग आ कर हाथ भी चलाने पड़ें. वैसे उनके पिछले कारनामो को देखते हुए यह काम अब तक हो जाना चाहिए था . यह भी देखना होगा कि किसी सही मुद्दे को सनसनी खेज बनाने के चक्क्कर में हर लड़ाई में दलित और भ्रष्टाचार जोड़ देना अकलमंदी नहीं अकल कि मंदी है.
जहाँ तक वर्मा जी का सवाल है उनको जानने वाला हर व्यक्ति जानता है कि सिद्धांतों के आगे वो किसी रिश्ते को वरीयता नहीं देते.... और यह भी कि किसी तथ्य के बिना कुछ भी कहना उनकी आदत में नहीं.

अविज्ञात परमहंस ने कहा…

युवा दखल मे नये लेखको मे चल रही यह बहस दिलचस्प होते जा रही है।
मुख्य मुद्दा है शिक्षाव्यवस्था का।
मेरा स्वतः का अनुभव यह है कि मै स्वयं कितना भी पढा लिखा क्यों न हू मेरे स्वभाव पर मै नियंत्रण नही रख सकता। जब जब मै बाहर देखता हूं मुझे गुस्सा ही गुस्सा आता है और गाली-गलौज और हाथापाई के अलावा और कुछ भी नही कर सकता। लेकिन जिन जिन लोगो के पीछे मै पडा था उनमेसे एक भी नही बदला है।
अन्तमे मै इस निष्कर्ष पर आ पहुचा हूं कि प्रकाश तुम दुनिया को नही बदल सकते। मुझे अविनाश से बहुत हमदर्दी है। मै भी उसकी तरह बहक गया था। मैने भी खूद को नंगा कर सामने वालो के कपडे उतारे है। कई लोग तो मुझसे डरते थे और ये कहते थे कि नंगे से खुदा भी डरता है।
लेकिन इस स्टेज से गुजर जाने के बाद एक और स्टेज आती है। जब आदमी खुद आत्मपरिक्षण करने लगता है। वस्तुतः जितना क्वालिफिकेशन बढ जाता है जितने गोल्ड मेडल मिलते है उतना ही अहंकार भी बढ जाता है। मैने दुनिया के मर्ज को बदलना चाहा अन्तमे उसी मर्जने मुझे ठीक कर दिया।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

सही है प्रोफ़ेसर साहब दुनिया गाली-गलौज़ और हाथापाई से नहीं बदलती। कभी प्रोफ़ेसर लालबहादुर वर्मा से मिलकर पूछियेगा कि वे इतने सारे लोगों को बेहतर कैसे बना सके? फिर शायद आप जान सकेंगे कि गोल्डमेडलों से परे भी एक दुनिया होती है।

और नंगों से ख़ुदा डरता होगा … हमारे जैसे लोग नहीं डरते …:-)

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " ने कहा…

कौन भला है कौन बुरा, ना जानूँ अतः ना लिखता.
मानव बुरा ना होता मूल में, बस इतना ही कहता.
इतना ही कहता हूँ, जो कोई समझ जायेगा बात.
कोई शिकायत नहीं करे, ना पाये वह आघात.
कह साधक कवि, नाराजी का कैसा दौर चला है?
कैसे कोई जानेगा, कौन बुरा है कौन भला है?
sahiasha.wordpress.com

Samar ने कहा…

इस घटना के सन्दर्भ में कोई जानकारी नहीं है इसलिए घटना पर कोई टिप्पड़ी नहीं करूँगा.
हाँ, लाल बहादुर वर्मा जी के बारे में ना केवल जानता हूँ वरन उनके साथ कुछ बरसों तक साथ काम करने का सुअवसर मिला है.. इसलिए ये जरूर कहूँगा कि उनके ऊपर कोई गलत टिप्पड़ी बिना सुने नकार देने योग्य है.
वर्मा जी उस सब का नकार हैं जो हिन्दी पट्टी में गलत है सडन भरा है..
इसके बरक्स, वह सकार की पाठशाला भी हैं..