सुदर्शन जी को युद्ध चाहिए। अभी एक अखबार को दिए गए साक्षत्कार में उन्होंने उवाचा की इस सारी फसाद का बस एक ही हल है - युद्ध ! यहाँ के अखबारों और टीवी चैनलों के उनके चम्पूओं ने तो इस को दबा ही दिया और सिवाय जनसत्ता के किस्सी ने इसे तवज्जो नही दी, लेकिन पाकिस्तान के प्रमुख दैनिक डॉनने इस को पहले पेज पर जगह दी।
सुदर्शन महाराज चाहते है कि अब युद्ध हो ही जाए, वो जानते हैकि इसमे लाखो लोग मारे जायेंगे और यह तृतीय विश्वयुद्ध का भी रूप ले सकता है , फ़िर भी उनका मानना है कि इसके बाद जो बचेगा वह बेहद सुंदर होगा।
उन्हें पता तो यह भी होगा कि आज के परमाणु अस्त्र हिरोशिमा से कई गुना ज़्यादा संहारक है और दोनों देश इस आसुरी ताक़त से लैस है लेकिन लगता है वो सोचते है कि बम की मार नागपुर तक नही पहुंचेगी।
इस विध्वंश पर वो शायद अपने राजमहल की नींव डालना चाहते है। गले में परमाणु विकरण के शिकार हमारे बच्चो के मुंड लटकाए हार की तरह! शायद पाकिस्तान के वातानुकूलित कमरों में बैठे उनके मुल्ला दोस्त भी यही चाहते है.
सवाल यह है कि हम क्या चाहते है? कितने हिरोशिमा अपने देश में और कितने अपने पड़ोस में?
15 टिप्पणियां:
अपने सुदर्शन जी की बातों पर जबरदस्ती पोस्ट छाप दी है | अरे जब अखबार तवज्जो नहीं देता है तो आप क्यों दे रहे हो |
कही आप भी पाकिस्तानी अखबार डॉन के लिए काम नही कर रहे ( क्षमा कीजिये अंतुले जैसे सापों के कारण ऐसा प्रश्न किया ) ?
क्या करें अब तो विश्वास नही रहा न |
तो आपके हिसाब से जो सुदर्शन का चम्पू नही है वह साप है?
भेडिये से साप होना बेहतर है।
वैसे आप ज़रूर लगता है सीधे पान्चजन्य के दफ़्तर से निकल के आ रहे है।
सुदर्शन और उसके चम्पूओ का नाश हो।
क्या बात है . वैसे आपकी नज़र मे क्या हल हो सकता है इस समस्या का ?
अच्छी बात पर ध्यान दिलाया आपने..मेरे ख्याल से हमें युद्ध नहीं करना चाहिये पाकिस्तान से .....कश्मीर से सेनायें हटाकर हमें सौंप देना चाहिये..और आज तक पिछले 50 साल मैं जितने मासूम पाकिस्तानियों को विभिन्न युद्धों मैं और बाद मैं आतंकवादी बताकर कश्मीर मैं और यहां वहां मुठभेङों मैं हमने मार दिया उनके लिए क्षमा मांगनी चाहिये...और आई एस आई चीफ के लिए भारत रत्न..क्यों ठीक रहेगा....मैं ज्यादा तो नहीं बोल गया क्यों कि श्री सुदर्शन जी और मैं तो युद्ध चाहते हैं ...युद्ध...सीना चीर देना चाहते हैं उनका जिन्होने भारत माता की तरफ आंख उठाकर देखा....
आप कुच्छ नहीं करोगे..! घर या दफ़्तर पर बैठ कर या पी.सी. पर नेटियाते रहोगे या खाते पादते रहोगे...! युद्ध में मरेंगे हमारे जांबाज सिपाही, जो गरीब जनता के बेटे हैं...! तुम लोग सबको अपना चौकीदार समझते हो क्या ?
तो युद्ध भड़काते हैं वे मानवता और देश के दुश्मन हैं! आइ.एस.आइ. और अलकायदा के असली एजेंट यही हैं ।
धीरू जी युद्ध किसी समस्या का हल नही होता। और ये जो सीना चीरने वाले शूरवीर है वे बस विनाश चाहते है। बताइये किस युद्ध से कॉन सी समस्या हल हुई? पहले विश्वयुद्ध ने दूसरे को जन्म दिया दूसरे ने पूरी दुनिया मे तमाम युद्ध्स्थल बना डाले । हम भी लडे 3-3 बार क्या हासिल हुआ? एक युद्ध जो तबाही लायेगा उसमे फ़ायदा सिर्फ़ हथियारो के सॉदागरो,व्यापारियो और अगर ज़िन्दा रहे तो सुदर्शन जैसे लोगो क होगा। बाकी जनता के लिये ख़ॉफ़नाक तबाही,विनष्ट भविष्य और आणविक प्रभाव से बन्जर ज़मीन ही होगी।
विकल्प क्या है यह मिलकर सोचना होगा!
प्रश्न तो वही का वही है समाधान बताइए हम जैसे कम अक्ल लोग सिर्फ़ समाधान चाहते है चाहे वह गर्दन झुकाके हो या गर्दन मरोड़ के
भैये युद्ध नहीं चाहते तो बाकि आप्संस दिये है न...
आज हमारे समाज की विड्म्बना यही है कि हम अपनी नही बल्कि चन्द लोगो की सोच पर निर्णय ले लेते है…और यह नही सोचते कि इस्से आम जनता का कोइ सरोकार नही। पर भुगतना तो इस आम जनता को ही पडेगा। युद्ध चाहने वाले तो कही शान से बेठे होन्गे । लेकिन अगर यह युद्ध हुआ ही तो बचेगे वे भी नही।
bahut achchha likha hai.uddha ka virodh awasya hona chahiye.
सुदर्शन जैसे लोग वहाँ भी है जो युद्ध चाहते होंगे। पर अब जो तस्वीर उभर कर आ रही है उससे यह साफ़ पता चल जाता है वीरगति प्राप्त सेनानियों के परिवार वालों के साथ सरकार क्या सलूक करती है। रांची में फिरायालाल चौक के पास अल्बर्ट एक्का चौक है। यह उस वीरगति प्राप्त सेनानी के नाम है। अभी उसकी विधवा की हालत बहुत खराब है,आये दिन टीवी चैनल कुछ न कुछ समाचार छापते हैं कि सरकार कैसे उसकी उपेक्षा कर रही है। दी गयी सरकारी ज़मीन पर अभी तक दखल तक न कर पायी बेचारी। और भी बहुत उदाहरण हैं ऐसे। तो बात है कि ऐसी बुशवादी फरमान में आकर लोग क्यों युद्ध मोल लें?इसका सही विकल्प होगा कि पड़ोसी मुल्क पर कूटनीतिक दवाब ही बनाया जाय,पर यह तभी संभव है जब अमेरिका नेक़नीयति से भारत का साथ दे वर्ना आज तक अमेरिका क्या करता रहा है लोगों से छिपा नहीं।युद्ध में जनता तबाह होगी और सैनिक मारे जायेंगे। सुदर्शन जैसे लोग तो कुर्सी पर बैठकर चाँदी ही काटेंगे।
प्रिय अशोक - युद्ध हर कीमत पर तो नही पर देश की कीमत पर लड़ा जाना चाहिए ये मेरा मानना है.जिस तरह छोटे छोटे युद्ध देश में हो रहे हैं और हमारे बच्चे फ़िर भी मर रहे हैं उससे बेहतर एक सामने का युद्ध होगा. बस बचाते रहेंगे तो आतंकवाद स्वरूपी ये दानव हमारे देश को लीलता जाएगा और शायद आप ये तो मानेंगे की पाकिस्तान सामने का युद्ध जीत नही सकता इसलिए ये परोक्ष लडाई लड़ रहा है. तो मैं सुदर्शन की बात से अगर पुरी तरह सहमत नही तो असहमत भी नही. हाँ ऐसा वक्तव्य देना बिल्कुल ग़लत है जिसका पाकिस्तान फायदा उठा सकता है मनोवैज्ञानिक युद्ध में!
इस में सुदर्शन जी की गलती नहीं है संघी विचारधारा के लोग इतने प्रसिद्धि पिपासु हैं कि वे अक्सर बिना सिरपैर के बयान सिर्फ अपने आपको चर्चा में रखने के लिये देते रहते हैं.
भाई
सवाल सिर्फ़ इतना नही है। देश इन्सानो से ही बनता है । आणविक हथियारो के युग मे हार-जीत के मायने बदल गये है। दोनो परिस्थितियो मे जो विनाश होगा वह अकल्पनीय है।
इसके अलावा आतन्क्वाद को केवल विदेशी हस्तक्षेप नही माना जा सकता। अगर ऐसा है तो फ़िर आसाम,ऊत्तर पूर्व और नक्सल समस्या को क्या कहेन्गे? देश के भीतर जिस तरह की भेदभाव पूर्ण सामाजिक आर्थिक प्रणाली काम कर रही है उसीने वह असन्तोष पैदा किया है जिससे आतन्कवाद को पनपने के लिये ज़मीन दी है। याद रखो इस फ़ेनामेना की शुरूआत 6 दिसम्बर और गोधरा से सीधे जुडी है। कश्मीर का सवाल भी दूध और खीर जैसा सीधा नही है।एक ऐसे समाज मे जहाँ धर्म , जाति,क्षेत्र और लिन्ग के नाम पर भयावह भेदभाव होता हो यह कोई आशचर्य जनक चीज़ नही की वन्चित तबके के लोग हथियार उठा ले, खासकर तब जब उनके पास करने को कुछ और हो भी न। जब तक आप अपने मुल्क के भीतर एक और बराबर होकर रहना नही सीख लेन्गे तब तक किसी के लिये भी आप पर हमला मुश्किल नही होगा।
युद्ध समस्याओ का हल नही होता, नई समस्याएँ पैदा करता है।
yuddha kabeelai mansikta ka prateek hai. antarrashtrya aad ke bavajood nirdoson ki jaan lene par joote khane padte hain.
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