27 नवंबर 2008

यकीन मगर कब तक


क्या लिखूं और लिख लिख कर होगा क्या?मुंबई नहीं हुई गरीब की भैंस हो गयी .. जो चाहे जब चाहे दुह ले जाए.. अभी माले गावं चल ही रहा था की ये सब हो गया... चुनाव के ठीक एक दिन पहले... पता नहीं क्या सच है क्या ... झूठ इतना तो तय है की आप तब तक ही जिंदा हैं जब तक कोई आपको मारना नहीं चाहता...बाकि डेमोक्रेसी वगैरह अब दिल के खुश रखने का ख्याल बस रह गया है.तो ... जिंदा है तो ज़िन्दगी की जीत पर यकीन कर..कम से कम तब तक , जब तक तेरे शहर में कोई धमाका नहीं हो जाता!!!!

5 टिप्‍पणियां:

अनुराग ने कहा…

उन्होंने जंग में भारत को हरा दिया है.
अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी....

कडुवासच ने कहा…

जिंदा है तो ज़िन्दगी की जीत पर यकीन कर..कम से कम तब तक , जब तक तेरे शहर में कोई धमाका नहीं हो जाता!!!!
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

क्या लिखूं और लिख लिख कर होगा क्या?मुंबई नहीं हुई गरीब की भैंस हो गयी .. जो चाहे जब चाहे दुह ले जाए.. अभी माले गावं चल ही रहा था की ये सब हो गया... चुनाव के ठीक एक दिन पहले... पता नहीं क्या सच है क्या ...Kabhi socha hai yah sab chunav se pahle hi kyon hota hai ?

बेनामी ने कहा…

बिलकुल ... सोचने वाली बात तो यही है की इन धमाकों का फायदा किसे मिलता है?
यह सबकुछ इतना स्पष्ट नहीं जितना लगता है!

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

बिलकुल ... सोचने वाली बात!!!!!!!1