tag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post7678636794458033870..comments2023-08-27T07:13:28.314-07:00Comments on दख़ल विचार मंच : ब्लागजगत के बारे में कुछ निष्कर्षAshok Kumar pandeyhttp://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-48755230637366354122010-03-10T01:52:20.729-08:002010-03-10T01:52:20.729-08:00अपने अन्य साथियों की बात पढ़ने पर रवि भाई की यह बात...अपने अन्य साथियों की बात पढ़ने पर रवि भाई की यह बात अच्छी लगी कि हम ज्यादातर मामलों में अति आषावादी और आत्मापेक्षी होते हैं। आत्मदंभ को बिल्कुल सिर पर धरकर चलते हुए। रंगनाथ , सिद्धार्थषंकर आदि लोगों ने बड़े संतुलित और निरन्तर आशावादी बने रहने के परवाइल्ले का मंत्र भी दिया है जो ज्यादा कारगर और सार्थक है।Dr.R.Ramkumarhttps://www.blogger.com/profile/03778714888793474886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-40970286519393512802010-03-10T01:42:42.766-08:002010-03-10T01:42:42.766-08:00मैं स्वयं भी ब्लाग के बारे इसी प्रकार के आत्ममंथन ...मैं स्वयं भी ब्लाग के बारे इसी प्रकार के आत्ममंथन के दौर से गुजर रहा था और लगभग यही निष्कर्ष निकाल रहा था। आपको पढ़कर एक राहत का अनुभव किया कि कमोबेस हम सब शिद्दत से इस विषय में एक ही दिशा में जा रहे हैं कि तू मुझे टिप्पणी करेगा तो मैं तुझे टिप्पणी दूंगा । अच्छाा लगे तो टिप्पणी करना अपने को तिरस्कृत करने जैसा आत्ममोह हो गया है।<br />और भूसें में हीरे की बारीक सी किर्ची ढूंढने जैसा है अच्छे लिखें जा रहे ब्लाग का पता करना।Dr.R.Ramkumarhttps://www.blogger.com/profile/03778714888793474886noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-71066787763023080122010-03-05T12:23:41.818-08:002010-03-05T12:23:41.818-08:00गुरु
नया मंत्र है....आज ही सूझा है
देखो
भागो मत, द...गुरु<br />नया मंत्र है....आज ही सूझा है<br />देखो<br />भागो मत, दुनिया को बदलो।<br />दुनिया न बदले तो खुद बदलो।।<br />कुछ तो लिखो.....जैसे आज का यह विचार भरा लेख।बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-75550322065266832802010-03-04T08:10:21.163-08:002010-03-04T08:10:21.163-08:00I would say, you will find these issue wherever yo...I would say, you will find these issue wherever you will go. I also sensed that but that should not stop you putting your views irrespectie of grouping etc ...keep on doing your job, keep fighiting ....let's be a change so that other aspirants dont feel wht u and me r feeling ....राम त्यागीhttps://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-90694024026147795722010-03-04T03:33:03.259-08:002010-03-04T03:33:03.259-08:00यह एक माध्यम के तौर पर दुतरफ़ा संवादों की भरपूर संभ...यह एक माध्यम के तौर पर दुतरफ़ा संवादों की भरपूर संभावना वाला माध्यम है।<br />bas isi sambhawna ka dohan keejiye...aur shayad aapne kiya bhi hain.varshahttps://www.blogger.com/profile/03696490521458060753noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-47764202676371838902010-03-04T02:30:16.000-08:002010-03-04T02:30:16.000-08:00होता है जब आप ये सोचकर इस दुनिया में आते है के कंप...होता है जब आप ये सोचकर इस दुनिया में आते है के कंप्यूटर के पीछे जहीन दिमाग मिलेगे ...वाजिब बहसे होगी ओर दिमाग के बल्ब ओर रोशन होगे .आप" हाईलाइटर 'लिए समाज के उस हिस्से को भी यहाँ पाते हैनिराश होते है ...... पर दरअसल आपका ये सोचना गलत है के ये दुनिया बाहर की दुनिया से कुछ इतर होगी ..गुजरते वक़्त के साथ आप सलेक्टिव हो जाते है .कम से कम इतनी सहूलियत तो है ...रिमोट की तरह ...<br />तो क्या ब्लॉग वाकई इतना छिछला है ? एक सवाल ओर है के आप क्या दुनिया बदलने आये है ?मन्नू भंडारी ने कहा था ...."प्रशंसा से आप किसी को भी जीत सकते है .आलोचना से किसी को भी हार 'उनका सन्दर्भ साहित्य जगत से था पर बात यहाँ भी लागू होती है ....सोचिये रात के दो बजे बंगाल के एक हिस्से में बैठे एक शख्स के दिमाग में एक ख्याल जलता है ओर कुछ देर में अमेरिका में बैठा एक शख्स उससे सहमति -असहमति जताता है ...बिना कमरे से बाहर निकले .....संवांद की सीधी प्रक्रिया .जो लेखक को मुहैया नहीं है ....<br />मै अपने अमेरिका में बैठे दोस्त को राग दरबारी का लिंक भेजता हूँ ....वो उसे पढता है ......यानि चीजों का सही इस्तेमाल ....आखिरकार" सभी छपी सभी चीज़े भी तो आपको प्रभावित नहीं करती ....<br />एक ओर बात ..कल मैंने किसी बड़े लेखक की एक साधारण सी कविता पर टिप्पणिया देखि...कभी कभी हम किसी विचारधारा को सपोर्ट करते- करते हायपर रियल्टी के मुहाने परखड़ी साधारण चीजों को असाधारण बना देते है .क्या एक असाधारण लेखक कभी साधारण नहीं लिख सकता ?<br />मेरा मानना है हमें लेख को पढना चाहिए लेखक को नहीं........असहमतिया भी संवांद का एक जरूरी हिस्सा है ये आत्म-मुग्धता से बचाये रखती है.ओर किसी सिस्टम में बने रहकर ही आप उसे बेहतर कर सकते है ......जाहिर है आप जैसे लोग हिंदी ब्लॉग की बेहतरी की एक बड़ा हिस्सा है ....परोक्ष रूप में ही सही .....सो जिम्मेवारी तो निभानी होगी....फिर प्रिंट मीडिया से मोह हंग हुआ तो ?डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-20043164043308384762010-03-04T01:54:35.758-08:002010-03-04T01:54:35.758-08:00देखिये सर, आप ब्लॉग को इतना सिरिअसली मत लीजिये... ...देखिये सर, आप ब्लॉग को इतना सिरिअसली मत लीजिये... यहाँ हर तरह के लोग हैं, अतिमहत्वक्षांची भी और सिरिअस रीडर भी... कोफ़्त होना लाज़मी भी है, उधर निशांत (ताहम) भी इसी बात को लेकर बैठा है... यह होना स्वाभाविक है... आप जैसा ऊँचे दर्जे का व्यक्ति उम्मीद ज्यादा रखेगा ही या फिर जो भी मेहनात से बेहतर लिखेगा वो तो बेहतर खोजेगा और वही पढ़ेगा और खुल कर वैसी ही प्रतिक्रिया करेगा... पर सभी ऐसे नहीं होते. सामने तारीफ तो खुल कर करते हैं पर उलटी प्रतिक्रिया पर बात लेकर बैठ जाते हैं. ब्लॉग अभी बच्चा है, इंग्लिश ब्लॉग की हालत तो और ख़राब है (मैं अमिताभ बच्चन की बात नहीं कर रहा ) वहां अच्छे से अच्छे लेख पर २-३ कमेन्ट आते हैं. रवि रतलामी जी सही कह रहे हैं. <br /><br />आप अच्छे ब्लॉगर नहीं हो सकते. साहित्यिक आदमी दुनियादारी में सफल हो जरुरी नहीं, उनके कुछ अपने तरीके होते हैं जो आपका दिल करने से मन करेगा. <br /><br />आप बेधड़क अपने कर्म में लगें, मैं तो यही कह सकता हूँ.सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-45781384369035914992010-03-04T00:26:33.266-08:002010-03-04T00:26:33.266-08:00आप बुद्धिमान हैं परिपक्व हैं अपना फैसला खुद लेना स...आप बुद्धिमान हैं परिपक्व हैं अपना फैसला खुद लेना सीखिए -प्रेक्षण तो ठीक ठाक हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-51953481049383107082010-03-04T00:01:16.837-08:002010-03-04T00:01:16.837-08:00आपके जो निष्कर्ष हैं, संभव है कि वे आपके अब तक के ...आपके जो निष्कर्ष हैं, संभव है कि वे आपके अब तक के अनुभव का सटीक निचोड़ हों, और उसमें काफी हद तक सच्चाई भी है, लेकिन सार्थक और स्थायी रूप से ब्लॉगिंग करनी हो तो रवि रतलामी जी की टिप्पणी और उससे भी बढ़कर एक ब्लॉगर के रूप में उनका उदाहरण बहुतों के लिए प्रेरक बन सकता है।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-57042775083684133072010-03-03T22:29:32.106-08:002010-03-03T22:29:32.106-08:00अशोक जी,आपने बिलकुल सही आकलन किया है....मैंने भी ज...अशोक जी,आपने बिलकुल सही आकलन किया है....मैंने भी जब ब्लॉग जगत में कदम रखा था....लगा था...लिखने पढने वाले,परिपक्व सोच वालों की दुनिया में आ गयी हूँ,सबलोग सबका लिखा पढेंगे...मार्गदर्शन करेंगे....उत्साह बढ़ाएंगे....ब्लॉग जगत की यह आभासी दुनिया कुछ अलग ही होगी....पर बहुत जल्दी ही मोहभंग हो गया और चीज़ें स्पष्ट नज़र आने लगीं,जिन सबका उल्लेख आपने किया है.<br />फिर भी,इस से बिलकुल ही किनारा कर लेना,बुद्धिमानी नहीं है...क्यूंकि इसकी पहुँच बहुत ज्यादा है...और उनलोगों तक है,जिन तक प्रिंट मीडिया नहीं पहुँच पाता,विदेशों में दक्षिण के शहरों में बसे लोग.उन्हें अच्छे साहित्य से वंचित करना,स्वागतयोग्य नहीं है.हाँ ,हर जगह टिप्पणी ना करने का निर्णय बिलकुल सही है.बहुत समय ज़ाया होता है और क्रियेटिविटी पर भी असर पड़ता है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-80884837717753157502010-03-03T21:20:09.085-08:002010-03-03T21:20:09.085-08:00पाण्डेय जी, आपने "दुश्मनी" शब्द का गलत ज...पाण्डेय जी, आपने "दुश्मनी" शब्द का गलत जगह पर गलत अर्थ में उपयोग कर लिया लगता है…। वैचारिक मतभेद और दुश्मनी में बहुत अन्तर है यह तो आप जानते ही हैं। आपकी अपनी विचारधारा है और मेरी अपनी, दोनों अपने-अपने तरीके से उसका विस्तार करने में लगे हैं, यही तो ब्लॉग का माध्यम है…। ब्लॉग के माध्यम की वजह से ही तो ऐसे कई लेखक और उनके कई लेख प्रसिद्ध हो रहे हैं और विभिन्न लोग उन्हें पढ़ रहे हैं जो कि किसी अखबार या न्यूज़ चैनल पर नहीं आते। रही बात टिप्पणियों की, हालांकि यह आपका व्यक्तिगत निर्णय है कि आप कहीं टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन मुझे लगता है कि आपको इस पर पुनर्विचार करना चाहिये। ये हो सकता है कि आप किसी लेखक से मतभेद रखते हों और उसके लेख पर विरोधी टिप्पणी करने पर उस लेखक के समर्थक आपके विरुद्ध कोई आपत्तिजनक टिप्पणी कर दें, लेकिन इसमें उस लेखक का क्या दोष है, कि आप सभी ब्लॉग्स पर टिप्पणी करने का ही बहिष्कार कर डालें?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-10996821008652867042010-03-03T20:56:18.673-08:002010-03-03T20:56:18.673-08:00आपका फैसला एकदम गलत फैसला है और मुझे लगता है कि आप...आपका फैसला एकदम गलत फैसला है और मुझे लगता है कि आपने भी ब्लॉगिंग विधा (मान लें कि हिन्दी ब्लॉगिंग?) को सतही तौर पर समझा और देखा है.<br /><br />ब्लॉग पर आप दूसरों को देखे बगैर कि वो क्या कीचड़ फैला रहे हैं, तो यह बेहद असरकारी और बढ़िया माध्यम लगेगा - हमेशा. और इन्हें अनदेखा करते हुए, अगर आप अपने रचनाकर्म में लगे रहेंगे बंधु, तो यह प्रिंट मीडिया से हजार गुना ज्यादा पहुँच, त्वरित असर और दोतरफा संवाद का माध्यम आपके लिए सदैव बना रहेगा.<br /><br />(हिन्दी में )सार्थक ब्लॉगिंग के उदाहरण कई हैं, बस, आग्रह है कि ब्लॉग जगत् के तथाकथित हॉट और हैप्पनिंग से अपनी निगाह उठा लें!रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-53347779725232081602010-03-03T19:18:27.483-08:002010-03-03T19:18:27.483-08:00आप पिछले दो सालों से ब्लोगजगत से जुड़े हैं तो अवश्य...आप पिछले दो सालों से ब्लोगजगत से जुड़े हैं तो अवश्य ही इसका कुछ ना कुछ भला भी चाहते होंगे और भला तभी होगा जब आप यहाँ बने रहकर यहाँ की खामियों को दूर करें तथा हिन्दी ब्लोगिंग को सार्थक बनायें।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-89354706509665742552010-03-03T18:20:48.390-08:002010-03-03T18:20:48.390-08:00विजय गौड़ की बात से सहमत!विजय गौड़ की बात से सहमत!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-3558238533840816142010-03-03T10:31:39.183-08:002010-03-03T10:31:39.183-08:00राजा ने नगर के एक चौराहे पर बड़ा सा पात्र रखवा दिय...राजा ने नगर के एक चौराहे पर बड़ा सा पात्र रखवा दिया और सभी नागरिकों से उसमें एक-एक लोटा दूध यज्ञ के लिए अपने-अपने घर से लाकर डालने को कहा। किसी ने एक लोटा पानी ही डाल दिया यह सोचकर कि इतने लोगों के दूध के बीच में इसका पता नहीं चलेगा। जब पात्र लबालब भर गया तो राजा ने देखा कि इसमें पानी ही पानी है। दो चार लोगों का असली दूध पानी में घुल चुका था। <br /><br />अपना ब्लॉगजगत ऐसे हंस की तलश में है जिसके पास ‘नीर-क्षीर विवेक’ हो। आप आगे क्यों नहीं आते?सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-32131675989781454172010-03-03T10:21:27.025-08:002010-03-03T10:21:27.025-08:00अशोक कहीं तुम भी तो आत्म मु़ग्धता के शिकार नहीं हो...अशोक कहीं तुम भी तो आत्म मु़ग्धता के शिकार नहीं हो रहे हो ? कैसी दुश्मनी यार ? तुमने अपनी बात कही, किसी को पसंद नहीं आई या उसने पलट के तुम्हें कुछ कह दिया तो इसे दुश्मनी तो नहीं कहा जा सकता न! यदि तुम भी ऎसा ही सोच रहे हो तो मेरी सलाह है, हमें खुद को भी चैक करना चाहिए। सोचना चाहिए कि कहीं हमारी बात ही तो अपने पूरे तर्क के साथ आने से तो नहीं चूक गई। यदि फ़िर भी मामला ज्यों का त्यों ही रहता है तो फ़िर फ़िर वही करते रहने के बाद ही शायद अपनी बात को अपने से असहमत साथी के साथ लगातार संवाद के बाद एक सहमति तक पहुंचने की संभावना को तलाशा जा सकता है। यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जिम्मेदारी उस पर ज्यादा है जो सचेत है, तुम्हें भी मैं एक जिम्मेदार व्यक्ति मानता हूं। डटे रहो। बेशक कम कम ही सही यार।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-60625603188916451142010-03-03T10:07:08.389-08:002010-03-03T10:07:08.389-08:00व्यक्तिगत तौर पर यह आपके लिए बहुत अच्छा होगा। आप ...व्यक्तिगत तौर पर यह आपके लिए बहुत अच्छा होगा। आप तात्कालिक मुद्दों के बरक्स स्थायी प्रभाव वाली रचनाएं कर पाएंगे।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-16626844529594580412010-03-03T09:45:50.532-08:002010-03-03T09:45:50.532-08:00आपने सही निष्कर्ष निकाले हैं...
और ये हमारी जिम्मे...आपने सही निष्कर्ष निकाले हैं...<br />और ये हमारी जिम्मेदारियों को और बढाते हैं शायद...<br /><br />ऐसा लगता है...<br />हम ज्यादा उम्मीद पाल लेते हैं...<br />शुरूआत में कुछ ज्यादा ही अतिउत्साही हो उठते हैं..<br /><br />सीधा संवाद..कहीं ना कही यह भ्रम पैदा करने लगता है...कि हम सीधा हस्तक्षेप कर पा रहे हैं...दूसरों की चेतनाओं में...<br /><br />इस पर पहुंच रख पाने वाले सामान्य लोगों की प्राथमिकताएं और वास्तविक उद्देश्यता काफ़ी अलग है...<br /><br />शरद कोकास और द्विवेदी जी की बात में दम है...<br /><br />यह साधन है...साध्य नहीं...रवि कुमार, रावतभाटाhttps://www.blogger.com/profile/10339245213219197980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-25594861419689612532010-03-03T08:56:37.295-08:002010-03-03T08:56:37.295-08:00I think print and blog are two different things an...I think print and blog are two different things and have different purpose, they do not replace each other.<br /><br />In print you write and rewrite and follow restrictions in some respect. In blog you have no restrictions, and also not so much responsibility. <br /><br />Blog is very young as compared to age old print media, requires less resources and no training , no purpose. It is also full of possibilities, to incorporate, articles, sounds, and visuals, which is not possible in print.स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-31972421362901235542010-03-03T08:56:37.294-08:002010-03-03T08:56:37.294-08:00niceniceRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-54373526442192436562010-03-03T08:45:04.825-08:002010-03-03T08:45:04.825-08:00हो सकता है आप का निर्णय सही हो। लेकिन यह एक माध्यम...हो सकता है आप का निर्णय सही हो। लेकिन यह एक माध्यम है। आप की बात को लोगों तक पहुँचाता है। सब से बड़ी बात यह कि यह उसे सहेज कर रखता है। कभी भी उस का उपयोग किया जा सकता है। हिन्दी नेट को समृद्ध करने का काम हमें करना चाहिए। बहुत कुछ है जिसे हिन्दी पाठकों के लिये यहाँ उपलब्ध कराना है। सभी लोग इस तरह सोचने लगे तो केवल और केवल कचरा यहाँ रह जाएगा। तब कहीं हम बैठे सोच रहे होंगे कि एक समय था जब हम यहाँ कुछ मनचाहा पैदा कर सकते थे।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-60840362669122977792010-03-03T08:14:32.279-08:002010-03-03T08:14:32.279-08:00अशोक , तुम्हारी बातों को मैने बहुत ध्यान से पढ़ा है...अशोक , तुम्हारी बातों को मैने बहुत ध्यान से पढ़ा है । दो वर्ष कम समय नहीं होता । ऐसे ही निष्कर्ष अन्य लोगों ने भी निकाले होंगे लेकिन बहुत से लोग प्रकट नहीं करते । प्रिंट मीडिया के कई लोग जो ब्लॉग जगत से जुड़े नहीं हैं वे भी लगभग इन निष्कर्षों की बात करते हैं । तुमने यह खुद अनुभव किया है इसलिये इसका महत्व अधिक है ।<br />यहाँ असहमति की परम्परा तो है लेकिन वह इतने मुखर रूप में नहीं है शायद इसी वज़ह से कुछ लोगों ने अपनी धारणायें बना ली हैं । जो भी हो तुम्हारा निर्णय अनुचित नहीं है लेकिन यहाँ तुम्हारे जैसे लोगों की ज़रूरत है जो एक पुल का काम भी कर रहे हैं । जिस तरह हम लोगों ने कविता में मंच को छोड़ दिया और उसका जैसा हश्र हुआ वैसा ही कुछ यहाँ न हो इसलिये अपनी उपस्थिति दर्ज करते रहना आवश्यक है । आगे तुम्हारी मर्ज़ी !!!शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-80619788740237969152010-03-03T08:08:17.676-08:002010-03-03T08:08:17.676-08:00अपना अपना नजरिया है और अपना अपना विवेक. इसमें पूछन...अपना अपना नजरिया है और अपना अपना विवेक. इसमें पूछना कैसा, भाई.<br /><br />और फिर हम जैसे क्या कहें जिन्हें प्रिन्ट उपलब्ध ही नहीं या इतना ही उपलब्ध है कि न के बराबर और यह माध्यम न जाने कितना कुछ दे जा रहा है.<br /><br />विश्व स्तरीय और पुराना साबित साहित्य उपलब्ध कराना तो बहुत अच्छा है किन्तु उसमें कुछ नया जोड़ने की संभावना भी तो हर वक्त बनती है और उस जोड़ को माध्यम से क्या फर्क पड़ता है. वो कुछ भी हो सकता है.<br /><br />प्रिंट के अपने झमेले हैं और थे तो यहाँ कुछ दीगर. उनके साथ जीने की आदत डालनी होती है और अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करना होता है.<br /><br />यह मात्र मेरा व्यक्तिगत विचार है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-4184047173383635812010-03-03T07:51:26.656-08:002010-03-03T07:51:26.656-08:00नही, आपने सही फैसला किया है आपने ..पर असहमति जताते...नही, आपने सही फैसला किया है आपने ..पर असहमति जताते रहें यहाँ भी...और आलोचना/असहमति का मेरे जैसे कुछ लोग हमेशा ही इन्तिज़ार करते हैं.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-44944158425984213732010-03-03T07:46:30.119-08:002010-03-03T07:46:30.119-08:00हम तो नये हैं यहाँ.पर लगता है चैन कहीं नहीं है.साह...हम तो नये हैं यहाँ.पर लगता है चैन कहीं नहीं है.साहित्य ही घाटे का सौदा है.शशिभूषणhttps://www.blogger.com/profile/15611262078016168965noreply@blogger.com