tag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post6567330800739816362..comments2023-08-27T07:13:28.314-07:00Comments on दख़ल विचार मंच : साहित्य का आधिक्य और पुरस्कारों की लालीपापAshok Kumar pandeyhttp://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-10187846515677379902009-10-24T23:12:56.227-07:002009-10-24T23:12:56.227-07:00रंगनाथ जी परिकथा शंकर जी द्वारा निकाली जा रही पत्र...रंगनाथ जी परिकथा शंकर जी द्वारा निकाली जा रही पत्रिका है जिसमे दोनो लोगों के बीच पत्राचार हुआ था। यह पत्रिका तो दिल्ली से ही निकलती है।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-14314083172598014902009-10-24T23:09:29.152-07:002009-10-24T23:09:29.152-07:00हालिया स्थिति तो यही है। लेकिन इसका एक कारण यह भी ...हालिया स्थिति तो यही है। लेकिन इसका एक कारण यह भी है कि पाठकांे में भी गैर-साहित्यिक लेखकों की लोकप्रियता कम है। उनके पास वो पाठक समूह नहीं है जो किसी साहित्यकार के पास होता है। वैसे बिस्मिल्लिा जी और गिरीश जी का मामला क्या है ? परति परिकथा तो हमारे तरफ आती ही नहीं कि हम जान सकें।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-54090164328834734122009-10-24T11:46:26.319-07:002009-10-24T11:46:26.319-07:00विविधता के नाम पर तो हिन्दी का लेखन ही नहीं साहित्...विविधता के नाम पर तो हिन्दी का लेखन ही नहीं साहित्य भी विपन्न है अशोक भाई। एक जैसे अनुभवों को ज्यादातर देख सकते हैं।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-54360617177582283972009-10-24T11:11:46.339-07:002009-10-24T11:11:46.339-07:00par isme yah bhi dekhna chahiye ki ye nai podh ham...par isme yah bhi dekhna chahiye ki ye nai podh hamesha sahitya me kyo falti fulti hai... kon in logo ko sahity ki sankirn me rahne ko lalait karta hai<br />badhai aapko<br />jab se aakhar suru huaa hai sab se jyada rachnae vivado par aai haichandrapalhttp://aakhar.orgnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-61070081644943608232009-10-24T11:08:54.294-07:002009-10-24T11:08:54.294-07:00साहित्येतर विषयों की अनदेखी आज की बात नहीं है । जब...साहित्येतर विषयों की अनदेखी आज की बात नहीं है । जब से लेखन शुरू हुआ है तभी से इतिहास विज्ञान आदि के लेखन को गौण लेखन माना जाने लगा यहाँ तक कि साहित्य इतिहास के लेखन को भी साहित्य के बराबर दर्जा नहीं मिला ,इसलिये हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन का कार्य भी एक विदेशी जर्मन लेखक को करना पड़ा । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जिसके 100 साल बाद आये । यह विडम्बना है कि इतिहास लेखन जो सत्य और तथ्यों पर आधारित है उसे ऐतिहासिक कल्पना पर लिखे साहित्य की तुलना में दोयम स्थान दिया गया । मूल विज्ञान तो छोड़िये विज्ञान फंतासी को भी साहित्य में स्थान नही मिला ।वहीं इनसे सम्बन्धित सारा साहित्य बिना इतिहास बोध औअर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिखा जा रहा है जो पाठकों में भ्रम पैदा कर रह है अथवा उन्हे सही दिशा नही प्रदान कर रहा । सैद्धांतिक समझ के बिना लिखा साहित्य इसी तरह नवउपनिवेशवाद् नवउदारवाद ,नव्साम्राज्यवाद नई आर्तिक नीति ,बाज़ार आदि के अर्थो को गड्ड्मड करके प्रस्तुत करता है । इसलिये इन साहित्येतर विषयों के महत्व को समझने की ज़रूरत है । पत्रकारिता और साहित्य के संघर्ष के विषय मे मुझे श्री विष्णु खरे का एक कथन याद आता है जब उन्होने कविता के लगातार अनुपस्थित होते जाने को लेकर बहुत क्षोभ के साथ कहा था कि पत्रकार के रूप मे कम से कम कुछ लोग मुझे जानते तो हैं । राजनीति पर लिखा साहित्य व्यंग्य मे भी यदि उपस्थित है तो उसे उसका उचित स्थान नही मिला । परसाई जी यदि नहीं होते तो अब तक इस विधा को ही परिधि से बाहर कर दिया गया होता । सम्मान पुरस्कार आदि की असलियत तो अब जग जाहिर है ,हिन्दी के नाम पर बहुत कुछ नकारात्मक भी हो रहा है लेकिन लोग उसके ग्लैमर में ही खोये हुए है इसलिये इस पर कुछ न कहा जाये तो बेहतर ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-64480017151628508312009-10-24T09:44:38.210-07:002009-10-24T09:44:38.210-07:00देखिए अशोक जी
पुरस्कार मतलब इनाम
इनाम में जुड़ा ह...देखिए अशोक जी<br />पुरस्कार मतलब इनाम<br />इनाम में जुड़ा है नाम<br />सिर्फ नाम ही नहीं नामा भी<br />हंगामा भी<br />तो सभी को चालिए होता है<br />हंगामा भी और नामा भी।<br /><br />पुरस्कार भी सत्कार भी<br />रचनाकार हो या न हो<br />रचना होनी काफी है<br />यही तो पुरस्कार की साकी है<br />आप इसे कैसे दूर करेंगे<br />लेने वाले लेकर और<br /><br />देने वाले देकर रहेंगे।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-83093145631762870772009-10-24T06:46:29.387-07:002009-10-24T06:46:29.387-07:00हिन्दी और उससे जुड़े पुरस्कारों पर आपका आलेख पसंद ...हिन्दी और उससे जुड़े पुरस्कारों पर आपका आलेख पसंद आया...यह जरूर है जो सम्मान हिन्दी को मिलना चाहिए था वो नहीं मिला है...इस मुद्दे पर कहना यही है कि इसके लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं...आजकल हम हिन्दी बोलते तो हैं पर पढ़ने से बचते हैं...रही बात पुरस्कारों की जो होता है वो आपने बयां किया ही है...आगे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं।Janduniahttps://www.blogger.com/profile/06681339283219498038noreply@blogger.com