tag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post6044867263433568608..comments2023-08-27T07:13:28.314-07:00Comments on दख़ल विचार मंच : गुलाम भारत के साहित्य में अंग्रेज़ सरकार का विरोध नहीं दिखता- बोधिसत्वAshok Kumar pandeyhttp://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-263476392921158372011-03-31T20:31:51.513-07:002011-03-31T20:31:51.513-07:00किशन चंद जेबा का नाटक छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण मे...किशन चंद जेबा का नाटक छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में खेले जाने का जिक्र मिला था, जिसका उल्लेख मैंने अपने पोस्ट तीन रंगमंच में http://akaltara.blogspot.com/ पर किया है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-27120104170777700442010-06-13T03:07:00.461-07:002010-06-13T03:07:00.461-07:00बोधिसत्व का यह आलेख जबरदस्त हैं। इस लेख से कई नई ब...बोधिसत्व का यह आलेख जबरदस्त हैं। इस लेख से कई नई बातों पर ध्यान गया। उम्मीद है हिन्दी साहित्य के शोधार्थी इस महत्वपूर्ण निबंध को पढ़ रहे होंगे। जिससे हिन्दी साहित्य का नया इतिहास लिखा जा सकेगा।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-23292798188494288542010-06-12T21:35:58.165-07:002010-06-12T21:35:58.165-07:00"देश भर में लगातार ऐसा लेखन होता रहा जिससे अं..."देश भर में लगातार ऐसा लेखन होता रहा जिससे अंग्रेज सरकार की दिक्कतें बढ़ती रहीं। लेकिन उनके लेखक महान नहीं थे"<br /><br />सहमति..<br />गुलामी के काल में लोकगायक और जनकवि तत्कालीन शासन के विरुद्द लिखते रहे थे जिनका साहित्य में कहीं भी उल्लेख नहीं है. जैसे कानपुर के किशन पहलवान ने अंग्रेज व्यवस्था पर चोट करती नौटंकिया लिखी, आगरा में पंडित रूपकिशोर ने भगत के माध्यम से लिखा. आगरा हाथरस के रसिया अखाड़े और ख्यालबाज उस समय इस विषय पर काफी लिख और गा रहे थे.मैथिली गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/09288072559377217280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-35987222963970799152010-06-11T11:34:17.547-07:002010-06-11T11:34:17.547-07:00यह बिलकुल जायज़ है ।यह बिलकुल जायज़ है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-90121793523434060742010-06-11T09:40:27.420-07:002010-06-11T09:40:27.420-07:00बहुत ही बढ़िया पोस्ट!
जानकारी के लिए आभार!बहुत ही बढ़िया पोस्ट!<br />जानकारी के लिए आभार!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-87131142256981367592010-06-11T07:32:56.041-07:002010-06-11T07:32:56.041-07:00दिलचस्प पड़ताल हैदिलचस्प पड़ताल हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-90593972929740509912010-06-11T04:25:52.053-07:002010-06-11T04:25:52.053-07:00बोधि भाई ने साहित्य के इतिहास के सही मर्म पर स्थल ...बोधि भाई ने साहित्य के इतिहास के सही मर्म पर स्थल पर चोट की है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-38627284374381962102010-06-11T02:15:33.266-07:002010-06-11T02:15:33.266-07:00बोधिसत्व बेहद संवेदनशील कवि हैं.....लेकिन ये गद्य ...बोधिसत्व बेहद संवेदनशील कवि हैं.....लेकिन ये गद्य उनकी सबसे बेहतरीन कविता है। शिल्प के लिए नहीं, उस तथ्य के लिए जिसे मुंह फेरने को ही रचनासंसार कहा गया है।..साहित्य 'सब' के हित के लिए होता है, ये दुष्टतापूर्ण प्रचार है। अफसोस ये है कि गोरे अफसरों से खाल बचाये रखने का सिलसिला काले साहबों के दौर में भी बदस्तूर जारी है।pankaj srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10306271251260997857noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4286453931356744099.post-61252163096012317772010-06-10T22:48:40.980-07:002010-06-10T22:48:40.980-07:00महत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवादमहत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवादJanduniahttps://www.blogger.com/profile/06681339283219498038noreply@blogger.com